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द्वितीय प्रतिपत्ति: नपुंसक की स्थिति ]
जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी |
कम्मभूमग भरहेरवय-पुव्वविदेह - अवरविदेह मणुस्सणपुंसगस्स वि तहेव । अकम्मभूमग मणुस्सणपुंसगस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जम्मणं पडुच्च जहन्त्रेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं । साहरणं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी । एवं जाव अंतरदीवगाणं।
[ ५९ ] भगवन् ! नपुंसक की कितने काल की स्थिति कही है ?
गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम ।
भगवन् ! नैरयिक नपुंसक की कितनी स्थिति कही है ?
गौतम ! जघन्य से दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम । सब नारक नपुंसकों की स्थिति कहनी चाहिए अधः सप्तमपृथ्वीनारक नपुंसक तक ।
भगवन् ! तिर्यक्योनिक नपुंसक की स्थिति कितनी है ?
गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि ।
भगवन् ! एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक की कितनी स्थिति कही है ?
गौतम ! जघन्स से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष ।
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भंते ! पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय तिर्यक्योनिक नपुंसक की स्थिति कितनी कही है ?
गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष । सब एकेन्द्रिय नपुंसकों की स्थिति
कहनी चाहिए । द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय नपुंसकों की स्थिति कहनी चाहिए ।
भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यक योनिक नपुंसक की कितनी स्थिति कही गई है ?
गौतम् ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि ।
इसी प्रकार जलचरतिर्यंच, चतुष्पदस्थलचर, उरपरिसर्प, भुजपरिसर्प, खेचर तिर्यक्योनिक नपुंसक इन सबकी जघन्य से अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट पूर्वकोटि स्थिति है ।
भगवन् ! मनुष्य नपुंसक की स्थिति कितनी कही है ?
गौतम ! क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि । धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि स्थिति ।
कर्मभूमिक भरत - एरवत, पूर्वविदेह - पश्चिमविदेह के मनुष्य नपुंसक की स्थिति भी उसी प्रकार कहनी
चाहिए ।
भगवन् ! अकर्मभूमिक मनुष्य नपुंसक की कितनी स्थिति कही है ?
गौतम ! जन्म की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त । संहरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से देशोन पूर्वकोटि । इसी प्रकार अन्तद्वीपिक मनुष्य नपुंसकों तक की स्थिति कहनी