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________________ १६६ ] [जीवाजीवाभिगमसूत्र चाहिए। विवेचन-नपुंसकाधिकार में उसके भेद-प्रभेद बताने के पश्चात् उसकी स्थिति का निरूपण इस सूत्र में किया गया है। सामान्यतया नपुंसक की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है। जघन्य अन्तर्मुहूर्त की स्थिति तिर्यंच और मनुष्य नपुंसक की अपेक्षा से है और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम भी स्थिति सप्तमपृथ्वी नारक नपुंसक की अपेक्षा से है। विशेष विवक्षा में प्रथम नारक नपुंसकों की स्थिति कहते हैं । सामान्यतः नैरयिक नपुंसक की जघन्य से दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है। विशेष विवक्षा में अलग-अलग नरकपृथ्वियों के नारकों को स्थिति निम्न है नारक नपुंसकों की स्थिति नारकपृथ्वी नपुंसक का नाम जघन्य उत्कृष्ट रत्नप्रभानारक नपुंसक दस हजार वर्ष एक सागरोपम शर्कराप्रभानारक नपुंसक एक सागरोपम तीन सागरोपम बालुकाप्रभानारक नपुंसक तीन सागरोपम सात सागरोपम पंकप्रभानारक नपुंसक सात सागरोपम दस सागरोपम धूमप्रभानारक नपुंसक दस सागरोपम सत्रह सागरोपम तमःप्रभानारक नपुंसक सत्रह सागरोपम बाबीस सागरोपम अधःसप्तमनारक नपुंसक बावीस सागरोपम तेतीस सागरोपम Nmo 39 सामान्यतः तिर्यंच नपुंसकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटि है। तिर्यंच नपुंसकों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त तिर्यक्नपुंसकों के भेद समुच्चय एकेन्द्रिय नपुंसक पृथ्वीकाय नपुंसक अप्काय नपुंसक तेजस्काय नपुंसक वायुकायनपुंसक वनस्पतिकाय नपुंसक द्वीन्द्रिय नपुंसक त्रीन्द्रिय नपुंसक उत्कृष्ट बाबीस हजार वर्ष बावीस हजार वर्ष सात हजार वर्ष तीन अहोरात्रि तीन हजार वर्ष दस हजार वर्ष बारह वर्ष उनपचास अहोरात्रि
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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