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________________ १६४] [जीवाजीवाभिगमसूत्र नपुंसक, त्रीन्द्रियजाति नपुंसक, चतुरिन्द्रियजाति नपुंसक और पंचेन्द्रियजाति नपुंसक। - एकेन्द्रियजाति नपुंसको के पांच भेद हैं-पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय नपुंसक। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय नपुंसकों के भेद अनेक प्रकार के हैं। प्रथम प्रतिपत्ति में इनके जो भेद-प्रभेद बताये हैं, वे सब यहाँ कहने चाहिए। पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक नपुंसक के तीन भेद-जलचर नपुंसक, स्थलचर नपुंसक और खेचर नपुंसक हैं। इनके अवान्तर भेद-प्रभेद प्रथम प्रतिपत्ति के अनुसार कहने चाहिए। केवल उरपरिसर्प में आसालिका का अधिकार नहीं कहना चाहिए। क्योंकि आसालिका चक्रवर्ती के स्कन्धावार आदि में कभी-कभी उत्पन्न होते है और अन्तर्मुहूर्त मात्र आयु वाले होते हैं अतः उनकी यहाँ विवक्षा नहीं है। मनुष्य नपुंसक तीन प्रकार के हैं-कर्मभूमिक, अकर्मभूमिक और अन्तर्दीपिक नपुंसक। इनके भेदप्रभेद प्रथम प्रतिपत्ति के अनुसार कहने चाहिए। नपुंसक की स्थिति ५९. [१] णपुंसगस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई। णेरइय नपुंसगस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई। सव्वेसिं ठिई भाणियव्वा जाव अधेसत्तमपुढविनेरइया। तिरियजोणिय णपुंसकस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडी।। एगिदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसकस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वावीसं वाससहस्साइं। पुढविकाइय एगिदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसकस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा!जहन्नेणंअंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वावीसं वाससहस्साइं।सव्वेसिं एगिंदिय नपुंसकाणं ठिती भाणियव्वा। बेइंदिय तेइंदिय चउरिंदिय णपुंसगाणं ठिई भाणियव्वा।। पंचिंदिय तिरिक्खजोणिय णपुंसकस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडी। एवं जलयरतिरिक्ख-चउप्पद-थलयर-उरगपरिसप्प-भुयगपरिसप्प-खहयर तिरिक्खजोणियणपुंसकाणं सव्वेसिं जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडी। मणुस्स णपुंसकस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! खेत्तं पडुच्च जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी। धम्मचरणं पडुच्च
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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