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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
चौथा देवपुरुष सम्बन्धी अल्पबहुत्व सूत्रकार ने प्रस्तुत सूत्र में साक्षात् कहा है। वह इस प्रकार हैसबसे थोड़े अनुत्तरोपपातिक देवपुरुष हैं, क्योंकि उनका प्रमाण क्षेत्रपल्योपम के असंख्येय भागवर्ती आकाशप्रदेशों की राशि तुल्य है। उनसे उपरितन ग्रैवेयक देवपुरुष संख्येयगुण हैं। क्योंकि वे बृहत्तर क्षेत्रपल्योपम के असंख्येयभागवर्ती आकाश प्रदेशों की राशि प्रमाण हैं । विमानों की बहुलता के कारण संख्येयगुणता है। अनुत्तर देवों के पांच विमान हैं और उपरितन ग्रैवेयक देवों के सौ विमान हैं। प्रत्येक विमान में असंख्येय देव हैं। जैसे-जैसे विमान नीचे हैं उनमें देवों की संख्या प्रचुरता से है। इससे जाना जाता है कि अनुत्तरविमान देवपुरुषों से उपरितन ग्रैवेयक देवपुरुष संख्येयगुण हैं।
उपरितन ग्रैवेयक देवपुरुषों की अपेक्षा मध्यम ग्रैवेयक देवपुरुष संख्येयगुण हैं । उनसे अधस्तन ग्रैवेयक देवपुरुष संख्येयगुण हैं, उनसे अच्युतकल्प के देवपुरुष संख्येयगुण हैं। उनसे आरणकल्प के देवपुरुष संख्येयगुण हैं। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि यद्यपि आरण और अच्युत कल्प दोनों समश्रेणी और समान विमानसंख्या वाले हैं तो भी कृष्णपाक्षिक जीव तथास्वभाव से दक्षिणदिशा में अधिक रूप में उत्पन्न होते हैं।
जीव दो प्रकार के हैं-कृष्णपाक्षिक और शुक्लपाक्षिक। जिन जीवों का कुछ कम अर्धपुद्गलपरावर्त संसार शेष रहा है वे शुक्लपाक्षिक हैं। इससे अधिक दीर्घ संसार वाले कृष्णपाक्षिक हैं। १
___ कृष्णपाक्षिकों की अपेक्षा शुक्लपाक्षिक थोड़े हैं। अल्पसंसारी जीव थोड़े ही हैं। कृष्णपाक्षिक बहुत हैं, क्योंकि दीर्घसंसारी जीव अनन्तानन्त हैं।
शंका हो सकती है कि यह कैसे माना जाय कि कृष्णपाक्षिक प्रचुरता से दक्षिणदिशा में पैदा होते हैं ? आचार्यों ने कहा है कि ऐसा स्वाभाविक रूप से ही होता है। कृष्णपाक्षिक प्रायः दीर्घसंसारी होते हैं
और दीर्घसंसारी प्रायः बहुत पापकर्म के उदय से होते हैं। बहुत पाप का उदय वाले जीव प्रायः क्रूरकर्मा होते हैं और क्रूरकर्मा जीव प्रायः तथास्वभाव से भवसिद्धिक होते हुए भी दक्षिण दिशा में उत्पन्न होते हैं। अतः दक्षिण दिशा में कृष्णपाक्षिकों की प्रचुरता होने से अच्युतकल्प के देवपुरुषों की अपेक्षा आरणकल्प के देवपुरुष संख्येयगुण हैं।
__ आरणकल्प के देवपुरुषों की अपेक्षा प्राणतकल्प के देवपुरुष संख्येयगुण हैं। उनसे आनतकल्प के देवपुरुष संख्येयगुण हैं। यहाँ भी प्राणतकल्प की अपेक्षा आनतकल्प में कृष्णपाक्षिक दक्षिणदिशा में ज्यादा होने से संख्येयगुण हैं। सब अनुत्तरवासी देव और आनतकल्प वासी पर्यन्त देवपुरुष प्रत्येक क्षेत्रपल्योपम के असंख्येय भागवर्ती आकाश प्रदेशों की राशि प्रमाण हैं । केवल असंख्येय भाग असंख्येय प्रकार का है इसलिए पूर्वोक्त संख्येयगुणत्व में कोई विरोध नहीं है।
१. जेसिमवड्ढो पुग्गलपरियट्रो सेसओ य संसारो।
ते सुक्कपक्खिया खलु अहिए पुण कण्हपक्खीआ॥ २. पायमिह कूरकम्मा भवसिद्धिया वि दाहिणिल्लेसु।
नेरइय-तिरिय-मणुया, सुराइठाणेसु गच्छन्ति ॥