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________________ द्वितीय प्रतिपत्ति: अल्पबहुत्व ] आनतकल्प देवपुरुषों से सहस्रारकाल वासी देवपुरुष असंख्येयगुण हैं क्योंकि वे घनीकृत लोक की एक प्रादेशिक श्रेणी के असंख्यातवें भाग में जितने आकाशप्रदेश हैं, उनके तुल्य हैं। उनसे महाशुक्रकल्पवासी देवपुरुष असंख्येयगुण हैं। क्योंकि वे वृहत्तर श्रेणी के असंख्येय भागवर्ती आकाश प्रदेश राशि तुल्य हैं । विमानों की बहुलता से यह असंख्येय गुणता जाननी चाहिए । सहस्रारकल्प में विमानों की संख्या छह हजार है जबकि महाशुक्र विमान में चालीस हजार विमान हैं । नीचे-नीचे के विमानों में ऊपर के विमानों की अपेक्षा अधिक देवपुरुष होते हैं । [१५९ महाशुक्रकल्प के देवपुरुषों की अपेक्षा लान्तक देवपुरुष असंख्येयगुण हैं। क्योंकि वे वृहत्तम श्रेणी के असंख्येय भागवर्ती आकाश प्रदेश राशि प्रमाण हैं। उनसे ब्रह्मलोकवासी देवपुरुष असंख्येयगुण हैं। क्योंकि वे अधिक वृहत्तम श्रेणी के असंख्येयभागगत आकाशप्रदेशराशि प्रमाण हैं। उनसे माहेन्द्रकल्पवासी देवपुरुष असंख्येयगुण हैं क्योंकि वे और अधिक वृहत्तम श्रेणी के असंख्येय भागगत आकाश प्रदेशराशि तुल्य हैं। उनसे सनत्कुमारकल्प के देव असंख्येयगुण हैं। क्योंकि विमानों की बहुलता हैं । सनत्कुमारकल्प में बारह लाख विमान हैं और माहेन्द्रकल्प में आठ लाख विमान हैं। दूसरी बात यह है कि सनत्कुमारकल्प दक्षिणदिशा में है और माहेन्द्रकल्प उत्तरदिशा में है। दक्षिणदिशा में बहुत से कृष्णपाक्षिक उत्पन्न होते हैं । इसलिए माहेन्द्रकल्प से सनत्कुमारकल्प में देवपुरुष असंख्येयगुण हैं। सहस्रारकल्प से लगाकर सनत्कुमारकल्प के देव सभी अपने-अपने स्थान में घनीकृत लोक की एक श्रेणी के असंख्येयभाग में रहे हुए आकाशप्रदेशों की राशि प्रमाण हैं परन्तु श्रेणी का असंख्येय भाग असंख्येय तरह का होने से असंख्यातगुण कहने में कोई विरोध नहीं आता । सनत्कुमारकल्प के देवपुरुषों से ईशानकल्प के देवपुरुष असंख्येयगुण हैं क्योंकि वे अंगुलमात्र क्षेत्र की प्रदेशराशि के द्वितीय वर्गमूल को तृतीय वर्गमूल से गुणित करने पर जितनी प्रदेशराशि होती है उतनी घनीकृत लोक की एक प्रादेशिक श्रेणियों में जितने आकाश प्रदेश होते हैं, उसका जो बत्तीसवाँ भाग है, उतने प्रमाण वाले हैं । ईशानकल्प के देवपुरुषों से सौधर्मकल्पवासी देवपुरुष संख्येयगुण हैं । यह विमानों की बहुलता के कारण जानना चाहिए। ईशानकल्प में अट्ठावीस लाख विमान हैं और सौधर्मकल्प में बत्तीस लाख विमान हैं। दूसरी बात यह है कि सौधर्मकल्प दक्षिणदिशा में है और ईशानकल्प उत्तरदिशा में है। दक्षिण दिशा में तथास्वभाव से कृष्णपाक्षिक अधिक उत्पन्न होते हैं अतः ईशानदेवलोक के देवों से सौधर्मदेवलोक के देव संख्यातगुण होते हैं । यहाँ एक शंका होती है कि सनत्कुमार और माहेन्द्रकल्प में भी उक्त युक्ति कही है। फिर वहाँ तो माहेन्द्र की अपेक्षा सनत्कुमार में देवों की संख्या असंख्यातगुण कही है और यहाँ सौधर्म में ईशान से संख्यातगुण ही प्रमाण बताया है, ऐसा क्यों ? इसका उत्तर यही है कि तथास्वभाव से ही ऐसा है । प्रज्ञापना आदि में सर्वत्र ऐसा ही कहा गया हैं ।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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