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द्वितीय प्रतिपत्ति: स्त्रीवेद की स्थिति]
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प्रतर में होते हैं, उनमें से बत्तीसवां भाग कम करने पर जितनी प्रदेशराशि होती है उतनी ज्योतिष्कदेवियां हैं।
(५) पांचवां अल्पबहुत्व समस्त स्त्री विषयक है। सबसे थोड़ी अन्तर्वीपों की अकर्मभूमिक मनुष्यस्त्रियां, उनसे देवकुरु-उत्तरकुरु की मनुष्यस्त्रियां संख्येयगुणी, उनसे हरिवर्ष-रम्यकवर्ष की स्त्रियां संख्येयगुणी, उनसे हैमवत-हैरण्यवत की स्त्रियां संख्येयगुणी, उनसे भरत-एरवत कर्मभूमि की मनुष्यस्त्रियां संख्येयगुण, उनसे पूर्वविदेह-पश्चिमविदेह की मनुष्यस्त्रियां संख्येयगुण हैं । इनका स्पष्टीकरण पूर्ववत् जानना चाहिए। पूर्वविदेहपश्चिमविदेह की मनुष्यस्त्रियों से वैमानिकदेवस्त्रियां असंख्येयगुण हैं, क्योंकि वे असंख्येय श्रेणी के आकाशप्रदेश की राशि के जितनी हैं। उनसे भवनवासीदेवियां असंख्यातगुण हैं, इसकी युक्ति पहले कही ही है। उनसे खेचरस्त्रियां असंख्येयगुण हैं। वे प्रतर के असंख्येय भागवर्ती असंख्येय श्रेणियों के आकाशप्रदेशों के बराबर हैं। उनसे स्थलचरस्त्रियां संख्येयगुण हैं, क्योंकि वे संख्येयगुण बड़े प्रतर के असंख्यातवें भाग में रही हुई असंख्येय श्रेणियों के आकाशप्रदेश जितनी हैं। उनसे जलचर तिर्यंचस्त्रियां संख्येयगुण हैं क्योंकि वे वृहत्तम प्रतर के असंख्यातवें भाग में रही हुई असंख्येय श्रेणियों के आकाशप्रदेश जितनी हैं। उनसे व्यन्तरस्त्रियां संख्येयगुण हैं, क्योंकि संख्येय कोटाकोटी योजन प्रमाण एक प्रदेश की श्रेणी जितने खण्ड एक प्रतर में होते हैं, उनमें से बत्तीसवां भाग कम करने पर जो राशि होती है उतनी व्यन्तरदेवियां हैं।
व्यन्तरदेवियों से ज्योतिष्कदेवियां संख्येयगुणी हैं, इसकी स्पष्टता पूर्व में की जा चुकी है। स्त्रीवेद की स्थिति
५१. इत्थिवेदस्स णं भंते ! कम्मस्स केवइयं कालं बंधठिई पण्णत्ता?
गोयमा !जहन्नेणंसागरोवमस्स दिवड्डो सत्तभागो पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेण ऊणो; उक्कोसेणं पन्नरससागरोवमकोडाकोडीओ, पण्णरस वाससयाइं अबाधा,अबाहूणिया कम्मठिती कम्मणिसेओ।
इत्थिवेदे णं भंते ! किंपगारे पण्णते? गोयमा ! फुफुअग्गिसमाणे पण्णत्ते से त्तं इत्थियाओ। [५१] हे भगवन् ! स्त्रीवेदकर्म की कितने काल की बन्धस्थिति कही गई है ?
गौतम! जघन्य से पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम १॥ सागरोपम के सातवें भाग (") प्रमाण है। उत्कर्ष से पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम की बन्धस्थिति है। पन्द्रह सौ वर्ष का अबाधाकाल है। अबाधाकाल से रहित जो कर्मस्थिति है वही अनुभवयोग्य होती है, अतः वही कर्मनिषेक (कर्मदलिकों की रचना) है।
हे भगवन् ! स्त्रीवेद किस प्रकार का कहा गया है ?
गौतम ! स्त्रीवेद फुफु अग्नि (कारिष-वनकण्डे की अग्नि) के समान होता है। इस प्रकार स्त्रियों का अधिकार पूरा हुआ।
विवेचन-स्त्री पर्याय का अनुभव स्त्रीवेद कर्म के उदय से होता है अतः स्त्रीवेद कर्म की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का प्रमाण प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है।