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________________ १२८] [जीवाजीवाभिगमसूत्र देवस्त्रियों की स्थिति-देवस्त्रियों की औघिकी जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट स्थिति पचपन पल्योपम की है। भवनपति और व्यन्तर देवियों की अपेक्षा से जघन्य स्थिति का कथन है और ईशान देवलोक की देवी को लेकर उत्कृष्ट स्थिति का विधान किया गया है। विशेष विवक्षा में भवनवासी देवियों की सामान्यत: दस हजार वर्ष और उत्कर्ष से साढ़े चार पल्योपम की स्थिति है। यह असुरकुमार देवियों की अपेक्षा से है। यहाँ भी विशेष विवक्षा में असुरकुमार देवियों की सामान्यतः जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट साढ़ेचार पल्योपम, नागकुमार देवियों की जघन्य दस हजार वर्षऔर उत्कृष्टदेशोनपल्योपम, इसी तरह शेष सुपर्णकुमारी से लगाकर स्तनितकुमारियों की स्थिति जानना चाहिए। व्यन्तरदेवियों की स्थिति जघन्य से दस हजार वर्ष और उत्कर्ष से आधा पल्योपम है। ___ ज्योतिष्कस्त्रियों की जघन्य से पल्योपम का आठवां भाग और उत्कर्ष से पचास हजार वर्ष अधिक आधा पल्योपम है। विशेष विवक्षा में चन्द्रविमान की स्त्रियों की स्थिति जघन्य से पल्योपम का चौथा भाग और उत्कर्ष से पचास हजार वर्ष अधिक आधा पल्योपम है। सूर्यविमान की स्यियाँ की स्थिति जघन्य से पल्योपम का चौथा भाग और उत्कर्ष से पांच सौ वर्ष अधिक अर्धपल्योपम है। ग्रहविमान की देवियों की स्थिति जघन्य से पाव पल्योपम और उत्कर्ष से आधा पल्योपम है। नक्षत्रविमान की देवियों की स्थिति जघन्य से पाव पल्योपम और उत्कर्ष से पाव पल्योपम से कुछ अधिक । ताराविमान की देवियों की स्थिति जघन्य से पल्योपम और उत्कर्ष से / पल्योपम से कुछ अधिक है। वैमानिकदेवियों की स्थिति वैमानिक देवियों की औघिकी जघन्यस्थिति एक पल्योपम की और उत्कर्ष से ५५ पल्योपम की है। विशेष चिन्ता में सौधर्मकल्प की देवियों की जघन्यस्थिति एक पल्योपम और उत्कर्ष से सात पल्योपम की है। यह स्थितिपरिमाण परिगृहीता देवियों की अपेक्षा से है। अपरिगृहीता देवियों की जघन्य से एक पल्योपम और उत्कर्ष से ५५ पल्योपम है। ईशानकल्प की देवियों की जघन्यस्थिति कुछ अधिक एक पल्योपम और उत्कर्ष से नौ पल्योपम है। यहाँ भी यह स्थितिपरिमाण परिगृहीता देवियों की अपेक्षा से है। अपरिगृहीता देवियों की जघन्यस्थिति पल्योपम से कुछ अधिक और उत्कर्ष से ५५ पल्योपम की है। वृत्तिकार ने लिखा है कि कई प्रतियों में यह स्थितिसम्बन्धी पूरा पाठ पाया जाता है और कई प्रतियों में केवल यह अतिदेश किया गया है-'एवं देवीणं ठिई भाणियव्वा जहा पण्णवणाए जाव ईसाणदेवीणं।' स्त्रीत्व की निरन्तरता का कालप्रमाण ४८.[१] इत्थीणं भंते ! इस्थित्ति कालओ केवच्चिरं होइ ?
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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