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________________ प्रथम प्रतिपत्ति: स्त्रीत्व की निरन्तरता का कालप्रमाण] गोयमा ! एक्केणादेसेणं जहन्त्रेणं एक्कं समयं उक्कोसं दसुत्तरं पलिओवमसयं पुव्वकोडिपुहुत्तमब्भहियं ॥ १ ॥ एक्केणादेसेणं जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अट्ठारस पनिओवमाइं पुव्वकोडिपुहुत्तमब्भहियं ॥२॥ एक्केणादेसेणं जहनेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं चउदस पलिओवमाझं पुष्वकोडिपुहुत्तमब्भहियाई ॥ ३ ॥ एक्केणादेसेणं जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं पलिओवमसयं पुव्वकोडिपुहुत्तमब्भहियं ॥४॥ एक्केणादेसेणं जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसं पलिओवमपुहुत्तं पुव्वकोडिपुहुत्तमब्भहियं ॥५ ॥ [४८-१] हे भगवन् ! स्त्री, स्त्रीरूप में लगातार कितने समय तक रह सकती है ? गौतम ! एक अपेक्षा से जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक एक सौ दस पल्योपम तक स्त्री, स्त्रीरूप में रह सकती है ॥ १ ॥ [१२९ दूसरी अपेक्षा से जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक अठारह पल्योपम तक रह सकती है ॥ २॥ तीसरी अपेक्षा से जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक चौदह पल्योपम तक रह सकती है ॥ ३ ॥ चौथी अपेक्षा से जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक एक सौ पल्योपम तक रह सकती है ॥ ४ ॥ पांचवी अपेक्षा से जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक पल्योपमपृथक्त्व तक रह सकती है ॥ ५ ॥ विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में प्रश्न किया गया है कि स्त्री, स्त्री के रूप में लगातार कितने समय तक रह सकती है ? इस प्रश्न के उत्तर में पांच आदेश ( प्रकार - अपेक्षाएँ) बतलाये गये हैं । वे पांच अपेक्षाएँ क्रम से इस प्रकार हैं (१) पहली अपेक्षा से स्त्री, स्त्री के रूप में लगातार जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट से पूवकोटिपृथक्त्व अधिक एक सौ दस (११०) पल्योपम तक रह सकती हैं, इसके पश्चात् अवश्य परिवर्तन होता है। इस आदेश की भावना इस प्रकार है कोई स्त्री उपशमश्रेणी पर आरूढ़ हुई और वहाँ उसने वेदत्रय का उपशमन कर दिया और अवेदकता का अनुभव करने लगी। बाद में वह वहाँ से पतित हो गई और एक समय तक स्त्रीवेद में रही और द्वितीय समय में काल करके (मरकर) देव (पुरुष) बन गई । इस अपेक्षा से उसके स्त्रीत्व का काल एक समय
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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