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द्वितीय प्रतिपत्ति ः देव स्त्रियों की स्थिति]
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अकर्मभूमिक मनुष्यस्त्रियों की स्थिति दो अपेक्षाओं से कही गई है। एक जन्म की अपेक्षा से और दूसरी संहरण की अपेक्षा से। संहरण का अर्थ है-कर्मभूमिज स्त्री को अकर्मभूमि में ले जाना। जैसे कोई मगथ आदि देश से सौराष्ट्र के प्रति रवाना हुआ और चलते-चलते सौराष्ट्र में पहुंच गया और वहाँ रहने लगा तो तथाविध प्रयोजन होने पर उसे सौराष्ट्र का कहा जाता है, वैसे ही कर्मभूमि से उठाकर अकर्मभूमि से संहृत की गई स्त्री अकर्मभूमि की कही जाती है। औधिक रूप से जन्म को लेकर जघन्य से अकर्मभूमिज स्त्रियों की स्थिति देशोन (पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम) एक पल्योपम की है और उत्कृष्ट से तीन पल्योपम की है। यह हैमवत, हैरण्यवत क्षेत्र की अपेक्षा से समझना चाहिए। क्योंकि वहाँ जघन्य से इतनी स्थिति सम्भव है। उत्कृष्ट तीन पल्योपम की स्थिति देवकुरु-उत्तरकुरु की अपेक्षा से जाननी चाहिए।
संहरण की अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोनपूर्वकोटि स्थिति है। कर्मभूमि से अकर्मभूमि में किसी स्त्री का संहरण किया गया हो और वह वहाँ केवल अन्तर्मुहूर्त मात्र जीवित रहे या वहाँ से उसका पुनः संहरण हो जाय, इस अपेक्षा से जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त कही है। यदि वह स्त्री वहाँ पूर्वकोटि आयुष्य वाली हो तो उसकी अपेक्षा देशोनपूर्वकोटि उत्कृष्ट स्थिति बतलाई है।
. यह शंका हो सकती है कि भरत और एरवत क्षेत्र भी कर्मभूमि में हैं, वहाँ भी एकान्त सुषमादि काल में तीन पल्योपम की स्थिति होती है और संहरण भी सम्भव है तो उत्कृष्ट से देशोनपूर्वकोटि कैसे संगत है? इसका समाधान है कि कर्मभूमि होने पर भी कर्मकाल की विवक्षा से ऐसा कहा गया है। भरत, ऐरवत क्षेत्र में एकान्त सुषमादि काल में भोगभूमि जैसी रचना होती है अतः वह कर्मकाल नहीं है। कर्मकाल में तो पूर्वकोटि आयुष्य ही होता है अतएव यथोक्त देशोनपूर्वकोटि संगत है।
___हैमवत, हैरण्यवत अकर्मभूमिक मनुष्यस्त्रियों की स्थिति जन्म की अपेक्षा जघन्य देशोन पल्योपम (पल्योपम के असंख्येय भाग न्यून) है और उत्कर्ष से परिपूर्ण पल्योपम है। संहरण को लेकर जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से देशोनपूर्वकोटि है।
हरिवर्ष और रम्यकवर्ष की स्त्रियों की स्थिति जन्म की अपेक्षा पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम दो पल्योपम की है और उत्कर्ष से परिपूर्ण दो पल्योपम की है। संहरण की अपेक्षा जघन्य एक अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोनपूर्वकोटि है।
देवकुरु-उत्तरकुरु में जन्म की अपेक्षा से पल्योपम के असंख्येयभागहीन तीन पल्योपम की जघन्यस्थिति और उत्कृष्टस्थिति परिपूर्ण तीन पल्योपम की है। संहरण की अपेक्षा जघन्य एक अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोनपूर्वकोटि है।
अन्तरद्वीपों की मनुष्यस्त्रियों की स्थिति जन्म की अपेक्षा से जघन्य कुछ कम पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण है और उत्कर्ष से पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण है। तात्पर्य यह है कि उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण आयुष्य से जघन्य आयु पल्योपम का असंख्यातवां भाग प्रमाण न्यून है। संहरण की अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोनपूर्वकोटि है।