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________________ ११०] [जीवाजीवाभिगमसूत्र शेष जीवस्थानों से नहीं। स्थितिद्वार-इनकी जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागरोपम की है। समवहतद्वार-मारणांतिकसमुद्घात से समवहत होकर भी मरते हैं और असमवहत होकर भी। च्यवनद्वार-ये देव मरकर पृथ्वी, पानी, वनस्पतिकाय में, गर्भज और संख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्यों में उत्पन्न होते है। शेष जीवस्थान में नहीं जाते। गति-आगतिद्वार-इसलिए वे दो गति में जाने वाले और दो गति से आने वाले हैं। हे आयुष्मन् श्रमण! ये देव प्रत्येकशरीरी हैं और असंख्यात हैं। इस प्रकार देवों का वर्णन हुआ। इसके साथ पंचेन्द्रियों का वर्णन पूरा हुआ और साथ ही उदार त्रसों की वक्तव्यता पूर्ण हुई। _आगे के सूत्र में स्थावरभाव और त्रसभाव की भवस्थिति का प्रतिपादन करते हुए सूत्रकार कहते भवस्थिति का प्रतिपादन ४३. थावरस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं बावीस वाससहस्साई ठिती पण्णत्ता। तसस्स णं भंते ! केवइयं कालं ठिती पण्णत्ता ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता। ' थावरे णं भंते ! थावरे ति कालओ केवच्चिर होइ? जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं अणंतं कालं अणंताओ उस्सप्पिणीओ अवसप्पिणीओ कालओ। खेत्तेओ अणंता लोया असंखेज्जा पुग्गलपरियट्टा। ते णं पुग्गलपरियट्टा आवलियाए असंखेज्जइभागो। तसे णं भंते ! तसे त्ति कालओ केवच्चिरं होइ ? जहंनेणंअंतोमुहत्तं उकोसेणंअसंखेज्जकालं असंखेज्जाओ उस्सप्पिणीओअवसप्पिणीओ कालओ। खेत्तओ असंखेज्जा लोगा। थावरस्स णं भंते ! केवतिकालं अंतर होइ? जहा तससंचिट्ठणाए। तसस्स णं भंते ! केवइकालं अंतरं होइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। एएसिणं भंते ! तसाणं थावराण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा, बहुया वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा तसा, थावरा अणंतगुणा।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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