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________________ प्रथम प्रतिपत्ति: देवों का वर्णन] [१०७ गौतम! संस्थान दो प्रकार के हैं-भवधारणीय और उत्तरवैक्रियिकी। उनमें जो भवधारणीय है वह समचतुरस्रसंस्थान है और जो उत्तरवैक्रियिक है वह नाना आकार का है। देवों में चार कषाय, चार संज्ञाएँ, छह लेश्याएँ, पांच इन्द्रियां, पांच समुद्घात होते हैं। वे संज्ञी भी हैं और असंज्ञी भी हैं। वे स्त्रीवेद वाले, पुरुषवेद वाले हैं, नपुंसकवेद वाले नहीं है। उनमें पांच पर्याप्तियां और पांच अपर्याप्तियां होती हैं। उनमें तीन दृष्टियां, तीन दर्शन होते हैं। वे ज्ञानी भी होते है और अज्ञानी भी होते हैं। जो ज्ञानी हैं वे नियम से तीन ज्ञान वाले हैं और जो अज्ञानी हैं वे भजना से तीन अज्ञान वाले हैं। उनमें साकार अनाकार दोनों उपयोग वाले पाये जाते हैं। उनमें तीनों योग होते हैं। उनका आहार नियम से छहों दिशाओं के पुद्गलों को ग्रहण करना है। प्रायः करके पीले और सफेद शुभ वर्ण के यावत् शुभगंध, शुभरस, शुभस्पर्श वाले पुद्गलों का आहार करते हैं। ___वे तिर्यंच और मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। उनकी स्थिति जघन्य से दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की है। वे मारणांतिकसमुद्घात से समवहत होकर भी मरते हैं और असमवहत होकर भी मरते हैं। - वे वहाँ से च्यवित होकर नरक में उत्पन्न नहीं होते, यथासम्भव तिर्यंचों मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, देवों में उत्पन्न नहीं होते। इसलिए वे दो गति वाले, दो आगति वाले, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात कहे गये हैं। हे आयुष्मन् श्रमण! यह देवों का वर्णन हुआ। इसके साथ ही पंचेन्द्रिय का वर्णन हुआ और साथ ही उदार त्रसों का वर्णन पूरा हुआ। विवेचन-प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार देवों के भेद-प्रभेद जानने चाहिए, वह इस प्रकार हैंदेव चार प्रकार के हैं-१. भवनवासी, २. वाणव्यंतर, ३.ज्योतिष्क और ४. वैमानिक। भवनवासी-जो देव प्रायः भवनों में निवास करते हैं वे भवनवासी कहलाते हैं। यह नागकुमार आदि की अपेक्षा से समझना चाहिए। असुरकुमार प्रायः आवासों में रहते हैं और कदाचित् भवनों में भी रहते हैं। नागकुमार आदि प्रायः भवनों में रहते हैं और कदाचित् आवासों में रहते हैं। भवन और आवास का अन्तर स्पष्ट करते हुए वृत्तिकार ने लिखा है कि भवन बाहर से गोलाकार और अन्दर से समचौरस होते हैं और नीचे कमल की कर्णिका के आकार के होते हैं। जबकि आवास कायप्रमाण स्थान वाले महामण्डप होते हैं, जो अनेक मणिरत्नों से दिशाओं को प्रकाशित करते हैं। __ भवनवासी देवों के दस भेद हैं-१ असुरकुमार, २ नागकुमार, ३ सुपर्णकुमार, ४ विद्युत्कुमार, ५ अग्निकुमार, ६ द्वीपकुमार, ७ उदधिकुमार, ८ दिशाकुमार, ९ पवनकुमार और १० स्तनितकुमार। इनके प्रत्येक के दो-दो भेद हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त । ये कुमारों के समान विभूषाप्रिय, क्रीड़ापरायण, तीव्र अनुराग और सुकुमार होते हैं अतएव ये 'कुमार' कहे जाते हैं। वाणव्यन्तर-'वि' अर्थात् विविध प्रकार के अन्तर अर्थात् आश्रय जिनके हों वे व्यन्तर हैं। भवन,
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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