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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
ता
रयणीओ। उत्तरवेउब्धिया जहन्नेण अंगलस्स संखेजड़भागं उक्कोसेणं जोयणसयसहस्सं।
सरीरगा छण्हं संघयणाणं असंघयणी णेवट्ठी,णेव छिराणेवण्हारूणेव संघयणमथि, जे पोग्गला इट्ठा कंता जाव ते तेसिं संघायत्ताए परिणमंति।
किंसंठिया ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-भवधारणिज्जा य उत्तरवेउव्विया य। तत्थ णं जे भवधारणिज्जा ते णं समचउरंससंठिया पण्णत्ता, तत्थ णं जे ते उत्तरवेउव्विया ते णं नाणासंठाणसंठिया पण्णत्ता, चत्तारि कसाया, चत्तारि सण्णाओ, छ लेस्साओ, पंच इंदिया, पंच समुग्घाया, सन्नी वि, असन्नी वि, इत्थिवेया वि, पुरिसवेया वि, णो णपुंसकवेदी, पज्जत्ती अपजत्तीओ पंच, दिट्ठी तिण्णि, तिण्णि दंसणा, णाणी वि अण्णाणी वि, जे नाणी ते नियमा तिण्णाणी, अण्णाणी भयणाए, दुविहे उवओगे,तिविहे जोगे,आहारो णियमा छहिसि;ओसन्नं कारणं पडुच्चंवण्णओ हालिहसुक्किलाइंजाव आहारमाहरेंति।उववाओ तिरियमणुस्सेहि, ठिती जहन्नेणंदसवाससहस्साइंउक्कोसेणं तेत्तीसंसागरोवमाइं, दुविहा विमति, उव्वट्टित्तानो नेरइएसु गच्छंति तिरियमणुस्सेसुजहासंभवं, नो देवेसु गच्छंति, दुगतिआ, दुआगतिआ परित्ता असंखेजा पण्णत्ता समणाउसो ! से तं देवा; से तं पंचेंदिया; से तं ओराला तसा पाणा।
[४२] देव क्या हैं ? देव चार प्रकार के हैं, यथा-भवनवासी, वानव्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक। भवनवासी देव क्या हैं ? भवनवासी देव दस प्रकार के कहे गये हैंअसुरकुमार यावत् स्तनितकुमार। वाणव्यन्तर क्या हैं ?
(प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार) देवों के भेद कहने चाहिए। यावत् वे संक्षेप से पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से दो प्रकार के हैं।
उनके तीन शरीर होते हैं-वैक्रिय, तैजस और कार्मण।
अवगाहना दो प्रकार की होती है-भवधारणीय और उत्तरवैक्रियिकी। इनमें जो भवधारणीय है वह जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट सात हाथ की है। उत्तरवैक्रियिकी जघन्य से अंगुल का संख्यातवां भाग और उत्कृष्ट एक लाख योजन की है ।
देवों के शरीर छह संहननों में से किसी संहनन के नहीं होते हैं, क्योंकि उनमें न हड्डी होती है न शिरा (धमनी नाड़ी) और न स्नायु (छोटी नसें) हैं, इसलिए संहनन नहीं होता। जो पुद्गल इष्ट कांत यावत् मन को आह्लादकारी होते हैं उनके शरीर रूप में एकत्रित हो जाते हैं-परिणत हो जाते हैं।
भगवन्! देवों का संस्थान क्या है ?