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________________ प्रथम प्रतिपत्ति: मनुष्यों का प्रतिपादन] [१०३ ये मनुष्य संक्षेप से पर्याप्त और अपर्याप्त के भेद से दो प्रकार के हैं, इत्यादि वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। इन मनुष्यों के सम्बन्ध में २३ द्वारों की विचारणा इस प्रकार हैशरीरद्वार-मनुष्यों के पांचों-औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण शरीर पाये जाते हैं। अवगाहना-जघन्य से इनकी अवगाहना अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट से तीन कोस संहनन-छहों संहनन पाये जाते हैं। संस्थान-छहों संस्थान पाये जाते हैं। कषायद्वार-क्रोधकषाय वाले, मानकषाय वाले, मायाकषाय वाले, लोभकषाय वाले, और अकषाय वाले (वीतराग मनुष्य की अपेक्षा) भी होते हैं। संज्ञाद्वार-चारों संज्ञा वाले भी हैं और नोसंज्ञी भी हैं। निश्चय से वीतराग मनुष्य और व्यवहार से सब चारित्री नोसंज्ञोपयुक्त हैं । लोकोत्तर चित्त की प्राप्ति से वे दसों प्रकार की संज्ञा से युक्त हैं। लेश्याद्वार-छहों लेश्या भी पायी जाती हैं और अलेश्यी भी हैं। परम शुक्लध्यानी अयोगिकेवली अलेश्यी हैं। इन्द्रियद्वार-पांचों इन्द्रियों के उपयोग से उपयुक्त भी होते हैं और केवली की अपेक्षा नोइन्द्रियोपयुक्त भी हैं। समुद्घातद्वार-सातों समुद्घात पाये जाते हैं। क्योंकि मनुष्यों में सब भाव संभव हैं। संजीद्वार-संज्ञी भी हैं और नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी भी हैं। केवली की अपेक्षा नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी हैं। वेदद्वार-तीनों वेद पाये जाते हैं और अवेदी भी होते हैं। सूक्ष्मसंपराय आदि गुणस्थान वाले अवेदी पर्याप्तिद्वार-पांचों पर्याप्तियां और पांचों अपर्याप्तियां होती हैं। भाषा और मनःपर्याप्ति को एक मानने की अपेक्षा से पांच पर्याप्तियां कही हैं। दृष्टिद्वार-तीनों दृष्टियाँ पाई जाती हैं। कोई मिथ्यादृष्टि होते हैं, कोई सम्यग्दृष्टि होते हैं और कोई मिश्रदृष्टि होते हैं। दर्शनद्वार-चारों दर्शन पाये जाते हैं। १ निर्वाणसाधकं सर्व ज्ञेयं लोकोत्तराश्रयम् । संज्ञाः लोकाश्रयाः सर्वाः भवांकुरजलं परं॥
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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