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________________ प्रथम प्रतिपत्ति: मनुष्यों का प्रतिपादन] [९७ गोयमा ! सव्वे वि। ते णं भंते ! जीवा किं आहारसन्नोवउत्ता जाव लोभसन्नोवउत्ता नोसन्नोवउत्ता ? गोयमा ! सव्वे वि। ते णं भंते ! जीवा किं कण्हलेसा य जाव अलेसा? गोयमा ! सव्वे वि। सोइंदियोवउत्ता जाव नोइंदियोवउत्ता वि। सव्वे समुग्घाया तं जहा-वेयणासमुग्घाए जाव केवलिसमुग्घाए। सन्नी विनोसन्नी वि असन्नी वि। इत्थिवेया वि जाव अवेदा बि। पंच पज्जत्ती, तिविहा वि दिट्ठी, चत्तारि दंसणा, णाणी वि अण्णाणी वि। जे णाणी ते अत्थेगइया दुणाणी अत्थेगइया तिणाणी अत्थेगइया चउणाणी, अत्थेगइया एगणाणी। जे दुण्णाणी ते नियमा आभिणिबोहियणाणी, सुयनाणी य। जे तिणाणी ते आभिणिबोहियणाणी, सुयणाणी, ओहिणाणी य अहवा आभिणिबोहियणाणी, सुयणाणी, मणपज्जवणाणी य।जे चउणाणी ते णियमा आभिणिबोहियणाणी, सुयणाणी, ओहियाणी, मणपज्जवणाणी य। जे एगणाणी ते नियमा केवलणाणी। एवं अण्णाणी विदुअण्णाणी, तिअण्णाणी।मणजोगी विवइजोगी वि, कायजोगी वि, अजोगी वि। दुविहे उवओगे, आहारो छदिसिं। उववाओ नेरइएहिं अहे सत्तमवजेहिं , तिरिक्खजोणएहिंतो उववाओ असंखेज्जवासाउयवज्जेहिं मणुएहिं अकम्मभूमग-अंतरदीवग-असंखेन्जवासाउयवज्जेहिं देवेहिं सव्वेहि।. ठिई जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं, दुविहा वि मरंति, उव्वट्टित्ता नेरइयाइसु जाव अणुत्तरोववाइएसु, अत्थेगइया सिझंति जाव अंतं करेंति। ते णं भंते ! जीवा कतिगतिआ कतिआगतिया पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचगतिया चउआगतिया परित्ता संखिज्जा पण्णत्ता समणाउसो ! सेतं मणुस्सा। [४१] मनुष्य का क्या स्वरूप है ? मनुष्य दो प्रकार के कहे गये हैं, यथा-सम्मूर्छिम मनुष्य और गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्य। भगवन् ! सम्मूर्छिम मनुष्य कहाँ सम्मूर्छित होते हैं-उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! मनुष्य क्षेत्र के अन्दर (गर्भज-मनुष्यों के अशुचि स्थानों में सम्मूर्छित) होते हैं, यावत् अन्तर्मुहूर्त की आयु में मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। भंते ! उन जीवों के कितने शरीर होते हैं ?
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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