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________________ [जीवाजीवाभिगमसूत्र गर्भज चलचरों की उत्कृष्ट स्थिति पूर्वकोटि है, चतुष्पदों की तीन पल्योपम, उरपरिसर्प और भुजपरिसर्प की पूर्वकोटि, पक्षियों की पल्योपम का असंख्यातवां भाग है। नरकों में उत्पाद की स्थिति को बताने वाली दो गाधाएँ हैं, जिनका भाव इस प्रकार है असंज्ञी जीव पहले नरक तक, सरीसृप दूसरे नरक तक, पक्षी तीसरे नरक तक, सिंह चौथे नरक तक, सर्प पांचवें नरक तक, स्त्रियाँ छठे नरक तक और मत्स्य तथा मनुष्य सातवें नरक तक जा सकते हैं। इस प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का कथन पूरा हुआ। आगे मनुष्यों का प्रतिपादन करते हैं। मनुष्यों का प्रतिपादन ४१. से किं तं मणुस्सा? मणुस्सा दुविहा पण्णत्ता, तं जहासंमुच्छिममणुस्सा य गब्भवक्कंतियमणुस्सा य। कहि णं भंते ! संमुच्छिममणुस्सा संमुच्छंति ? गोयमा ! अंतो मणुस्सखेत्ते जाव करेंति। तेसिंणं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तिन्नि सरीरगा पण्णत्ता, तं जहाओरालिए, तेयए, कम्मए। से तं समुच्छिममणुस्सा। से किं तं गब्भवक्कंतियमणुस्सा ? गब्भवक्कंतियमणुस्सा तिविहा पण्णत्ता, तं जहाकम्मभूमया, अकम्मभूमया, अंतरदीवया। एवं मणुस्सभेदो भाणियव्यो जहा पण्णवणाए तहाणिरवसेसंभाणियव्वं जाव छउमत्था य केवली य । ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्ता य अपज्जत्ता य। तेसिं णं भंते ! जीवाणं कति सरीरा पण्णता ? गोयमा ! पंच सरीरा, तं जहा-ओरालिए जाव कम्मए। सरीरोगाहणा जहन्नेणंअंगुलासंखेज्जइभागं उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई।छच्चेव संघयणा छस्संठाणा। ते णं भंते ! जीवा कि कोहकसाई जाव लोभकसाई अकसाई ? असण्णी खलु पढमं दोच्चं च सरीसवा तइय पुढवि। सीहा जंति चउत्थं उरगा पुण पंचमिं पुढवि॥ १॥ छद्रिं च इत्थियाउ, मच्छा मण्या य सत्तमिं पुढविं।। एसो परमोववाओ बोद्धव्वो नरयपुढविसु॥२॥
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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