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________________ ९४] [जीवाजीवाभिगमसूत्र इनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट पूर्वकोटि है। ये मरकर यदि नरक में जाते हैं तो पाँचवें नरक तक जाते हैं, सब तिर्यंचों और सब मनुष्यों में भी जाते हैं और सहस्रार देवलोक तक भी जाते हैं। शेष सब वर्णन जलचरों की तरह जानना। यावत् ये चार गति वाले, चार आगति वाले, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात हैं। यह उरपरिसपों का कथन हुआ। भुजपरिसर्प क्या हैं ? भुजपरिसॉं के भेद पूर्ववत् कहने चाहिए। चार शरीर, अवगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट से दो कोस से नौ कोस तक, स्थिति जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से पूर्वकोटि। शेष स्थानों में उरपरिसरों की तरह कहना चाहिए। यावत् ये दूसरे नरक तक जाते हैं। यह भुजपरिसर्प का कथन हुआ। इसके साथ ही स्थलचरों का भी कथन पूरा हुआ। ४०. से किं तं खहयरा? खहयरा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा. चम्मपक्खी तहेव भेदो, ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं, उक्कोसेणं धणुपुहुत्तं । ठिई जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेण परिओवमस्स असंखेज्जइभागो; सेसं जहा जलयराणं नवरं जाव तच्चं पुढविं गच्छंति जाव से तं खहयर-गब्भवक्कंतिय-पंचिंदियतिरिक्खजोणिया, से तं तिरिक्खजोणिया। [४०] खेचर क्या हैं ? खेचर चार प्रकार के हैं, जैसे कि चर्मपक्षी आदि पूर्ववत् भेद कहने चाहिए। इनकी अवगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट से धनुषपृथक्त्व। स्थिति जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवां भाग, शेष सब जलचरों की तरह कहना। विशेषता यह है कि ये जीव तीसरे नरक तक जाते हैं। ये खेचर गर्भव्युत्क्रांतिक पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों का कथन हुआ। इसके साथ ही तिर्यंचयोनिकों का वर्णन पूरा हुआ। विवेचन [३९-४०]-इन सूत्रों में स्थलचर गर्भव्युत्क्रांतिक और खेचर गर्भव्युत्क्रांतिक के भेदों को बताने के लिए निर्देश किया गया है कि सम्मूर्छिम स्थलचर और खेचर की भांति इनके भेद समझने चाहिए। सम्मूर्छिम स्थलचरों में उरपरिसर्प के भेदों में आसालिका का वर्णन किया गया है, वह यहाँ नहीं कहना चाहिए। क्योंकि आसालिका सम्मूर्छित ही होती है, गर्भव्युत्क्रांतिक नहीं। दूसरा अन्तर यह है कि महोरग के सूत्र में 'जोयणसयंपि जोयणसयपुहुत्तिया वि जोयणसहस्संपि' इतना पाठ अधिक कहना चाहिए।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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