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प्रथम प्रतिपत्ति: गर्भज स्थलचरों का वर्णन]
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परित्ता असंखेज्जा पण्णत्ता। से तं चउप्पया।
से किं तं परिसप्पा? परिसप्पा दुविहा पण्णत्ता, तं जहाउरपरिसप्पा य भुयगपरिसप्पा य। से किं तं उरपरिसप्पा ?
उरपरिसप्पा तहेव आसालियवज्जो भेदो भाणियव्वो, सरीरोगाहणा जहण्णेणंअंगुलस्स असंखेज्जइभागं, उक्कोसेणं जोयणसहस्सं, ठिई जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडी।
उववट्टित्ता नेरइएसु जाव पंचमं पुढविं ताव गच्छंति, तिरिक्खमणुस्सेसु सव्वेसु, देवेसु जाव सहस्सारा। सेसं जहा जलयराणं जाव चउगतिया चउआगतिया परित्ता असंखेज्जा।से तं उरपरिसप्पा।
से किं तं भुयगपरिसप्पा ? . भेदो तहेव। चत्तारि सरीरगा, ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलासंखेज्जइभागं उक्कोसेणं गाउयपुहुत्तं। ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडी। सेसेसु ठाणेसु जहा उरपरिसप्पा, णवरं दोच्चं पुडविं गच्छंति।
से तं भुयपरिसप्या, से तं थलयरा। [३९] (गर्भज) स्थलचर क्या हैं ?
(गर्भज) स्थलचर दो प्रकार के हैं, यथा-चतुष्पद और परिसर्प । चतुष्पद क्या हैं ? चतुष्पद चार तरह के हैं, यथा
एक खुर वाले आदि भेद प्रज्ञापना के अनुसार कहने चाहिए। यावत् ये स्थलचर संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त । इन जीवों के चार शरीर होते हैं । अवगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट से छह कोस की है। इनकी स्थिति उत्कृष्ट तीन पल्योपम की है। ये मरकर चौथे नरक तक जाते हैं, शेष सब वक्तव्यता जलचरों की तरह जानना यावत् ये चारों गतियों में जाने वाले और चारों गतियों से आने वाले हैं, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात हैं। यह चतुष्पदों का वर्णन हुआ।
परिसर्प क्या हैं ? परिसर्प दो प्रकार के हैं-उरपरिसर्प और भुजपरिसर्प। उरपरिसर्प क्या हैं ? उरपरिसर्प के पूर्ववत् भेद जानने चाहिए किन्तु आसालिक नहीं कहना चाहिए।
इन उरपरिसरों की अवगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट से एक हजार योजन है।