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________________ प्रथम प्रतिपत्ति : गर्भज जलचरों का वर्णन] [८९ ___ इनका अर्थ इस प्रकार हैं-सम्मूर्छिम जलचरों की उत्कृष्ट अवगाहना हजार योजन की हैं, चतुष्पदों की गव्यूति (कोस) पृथक्त्व है, उरपरिसरों की योजनपृथक्त्व की है। सम्मूर्छिम भुजगपरिसर्प और पक्षियों की धनुषपृथक्त्व की हैं। सम्मूर्छिम जलचरों की उत्कृष्ट स्थिति पूर्वकोटी है। चतुष्पदों की चौरासी हजार वर्ष की हैं, उरपरिसों की तिरपन हजार वर्ष की है, भुजपरिसरों की बयालीस हजार वर्ष की है, पक्षियों की बहत्तर हजार वर्ष की है। यह सम्मूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों का कथन हुआ। गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंचों का कथन ३७. से किं तं गमवक्कंतिय पंचेंदिय तिरिक्खजोणिया? गम्भवक्कंतिय पं० तिरिक्खजोणिया तिविहा पण्णत्ता, तं जहा-जलयरा, थलयरा, खहयरा। [३७] गर्भव्युत्क्रान्तिक पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक क्या हैं ? - गर्भव्युत्क्रान्तिक पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा-जलचर, स्थलचर और खेचर। गर्भज जलचरों का वर्णन ३८. से किं तं जलयरा ? जलयरा, पंचविहा पण्णत्ता, तं जहामच्छा, कच्छभा, मगरा, गाहा, सुंसुमारा। सव्वेसिं भेदो भाणियव्यो तहेवजहा पण्णवणाए, जावजे यावण्णे तहप्पगाराते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा पज्जत्ता य अपज्जत्ता य। तेसिं णं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता? गोयमा ! चत्तारि सरीरगा पण्णत्ता, तं जहाओरालिए, वेउव्विए, तेयए, कम्मए। सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं उक्कोसेणंजोयणसहस्सं। छविह संघयणी पण्णत्ता, तं जहा वइरोसभनारायसंघयणी, उसभनारायसंघयणी, नारायसंघयणी, अद्धनारायसंघयणी, कीलियासंघयणी, सेवट्टसंघयणी। छव्विहा संठिया पण्णत्ता, तं जहा समचउरंससंठिया, णग्गोधपरिमंडलसंठिया, सादिसंठिया,खुजसंठिया, वामणसंठिया, हुंडसंठिया।कसाया सव्वे, सण्णाओ चत्तारि, लेसाओ छह, पंच इंदिया, पंच समुग्धाया आइल्ला,
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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