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प्रथम प्रतिपत्ति: स्थलचरों का वर्णन]
परिसर्प। ये संक्षेप से दो प्रकार के है - पर्याप्त और अपर्याप्त । शरीरावगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व (दो धनुष से नौ धनुष तक ) ।
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स्थिति उत्कृष्ट से बयालीस हजार वर्ष । शेष जलचरों की भाँति कहना यावत् ये चार गति में जाने वाले, दो गति से आने वाले, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात हैं। यह भुजग परिसर्प संमूर्छिमों का कथन हुआ। इसके साथ ही स्थलचरों का कथन भी पूरा हुआ।
खेचर का क्या स्वरूप है ?
खेचर चार प्रकार के कहे गये हैं, यथा - चर्मपक्षी, रोमपक्षी, समुद्गकपक्षी और वितततपक्षी । चर्मपक्षी क्या हैं ?
चर्मपक्षी अनेक प्रकार के हैं, जैसे- वल्गुली यावत् इसी प्रकार के अन्य चर्मपक्षी ।
रोमपक्षी क्या हैं ?
रोमपक्षी अनेक प्रकार के हैं, यथा-ढंक, कंक यावत् अन्य इसी प्रकार के रोमपक्षी ।
समुद्गकपक्षी क्या हैं ?
ये एक ही प्रकार के हैं। जैसा प्रज्ञापना में कहा वैसा जानना चाहिए ।
इसी तरह विततपक्षी भी पन्त्रवणा के अनुसार जानने चाहिए ।
ये खेचर संक्षेप से दो प्रकार के कहे गये हैं- पर्याप्त और अपर्याप्त इत्यादि पूर्ववत् । विशेषता यह है कि इनकी शरीरावगाहना जघन्य से अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व है। स्थिति उत्कृष्ट बहत्तर हजार वर्ष की है। शेष सब जलचरों की तरह जानना चाहिए। यावत् ये खेचर चार गतियों में जाने वाले, दो गतियों से आने वाले, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात हैं। यह खेचरों का वर्णन हुआ। साथ ही संमूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों का कथन पूरा हुआ।
विवेचन - पूर्व सूत्र में जलचरों का वर्णन करने के पश्चात् इस सूत्र में संमूर्छिम स्थलचर और खेचर का वर्णन किया गया हैं। स्थलचर संमूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंच दो प्रकार के हैं - चतुष्पद और परिसर्प । जिसके चार पांव हों वे चतुष्पद हैं, जैसे अश्व, बैल आदि । जो पेट के बल या भुजाओं के सहारे चलते हैं वे परिसर्प हैं। जैसे सर्प, नकुल आदि। सूत्र में आये हुए दो चकार स्वगत अनेक भेद के सूचक हैं।
चतुष्पद स्थलचर चार प्रकार के हैं - एक खुर वाले, दो खुर वाले, गंडीपद और सनखपद । प्रज्ञापनासूत्र में इन चारों के प्रकार बताये गये हैं, जो इस भाँति हैं
एक खुर वाले अनेक प्रकार के हैं यथा - अश्व, अश्वतर (खेचर), घोटक (घोड़ा), गर्दभ, गोरक्षर, कन्दलक, श्रीकन्दलक और आवर्तक आदि ।
दो खुर वाले अनेक प्रकार के हैं, यथा - ऊँट, बैल, गवय (नील गाय ), रोझ, पशुक, महिष (भैंसभैंसा, मृग, सांभर, बराह, अज (बकरा-बकरी), एलक (भेड़ या बकरा ), रुरु, सरभ, चमर ( चमरीगाय), कुरंग, गोकर्ण आदि ।