SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 133
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [जीवाजीवाभिगमसूत्र चतुष्पद स्थलचर सं. प. तिर्यंच चार प्रकार के हैं, यथा- एक खुर वाले, दो खुर वाले, गंडीपद और सनखपद। यावत् जो इसी प्रकार के अन्य भी चतुष्पद स्थलचर हैं। वे संक्षेप से दो प्रकार के हैंपर्याप्त और अपर्याप्त। उनके तीन शरीर, अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट दो कोस कोस तक। स्थिति जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट चौरासी हजार वर्ष की होती है। शेष सब जलचरों के समान समझना चाहिए। यावत् ये चार गति में जाने वाले और दो गति से आने वाले हैं, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात हैं। यह स्थलचर चतुष्पद संमूच्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिकों का कथन पूरा हुआ। ८४ ] परिसर्प स्थलचर सं. पं. तिर्यचयोनिक क्या हैं ? रिसर्प स्थलचर सं. पं. तिर्यंचयोनिक दो प्रकार के हैं, यथा-उरग परिसर्प संमू. पं. ति और भुजग परिसर्प संमू. । उरग परिसर्प संमू. क्या हैं ? उरग परिसर्प समू. चार प्रकार के हैं-अहि, अजगर, आसालिया और महोरग । अहि कौन हैं ? अहि दो प्रकार के हैं - दर्वीकर (फणवाले) और मुकुली (फण रहित ) । दर्वीकर कौन हैं ? दर्वीकर अनेक प्रकार के हैं, जैसे- आशीविष आदि यावत् दर्वीकर का कथन पूरा हुआ ।. मुकुली क्या हैं ? मुकुली अनेक प्रकार के हैं, जैसे- दिव्य, गोनस यावत् मुकुली का कथन पूरा हुआ। अजगर क्या हैं ? अजगर एक ही प्रकार के हैं। अजगरों का कथन पूरा हुआ । आसालिक क्या हैं ? 'अनुसार आसालिकों का वर्णन जानना चाहिए । प्रज्ञापनासूत्र महोरग क्या हैं ? प्रज्ञापना के अनुसार इनका वर्णन जानना चाहिए। इस प्रकार के अन्य जो उरपरिसर्प जाति के हैं वे संक्षेप से दो प्रकार के हैं - पर्याप्त और अपर्याप्त । शेष पूर्ववत् जानना चाहिए। विशेषता इस प्रकार - इनकी शरीर अवगाहना जघन्य से अंगुल के असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट योजन पृथक्त्व (दो से लेकर नव योजन तक) । स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तिरपन हजार वर्ष । शेष द्वार जलचरों के समान जानना चाहिए यावत् ये जीव चार गति में जाने वाले, दो गति से आने वाले, प्रत्येकशरीरी और असंख्यात हैं। यह उरग परिसर्प का कथन हुआ । भुज परिसर्प संमूर्छिम स्थलचर क्या हैं ? भुजग परिसर्प संमूर्छिम स्थलचर अनेक प्रकार के हैं, यथा-नेवला यावत् अन्य इसी प्रकार के भुजग
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy