SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम प्रतिपत्ति: नैरयिक-वर्णन] [ ७३ शेष कथन त्रीन्द्रियों की तरह जानना चाहिए यावत् ये चतुरिन्द्रिय जीव असंख्यात कहे गये हैं । पंचेन्द्रियों का कथन ३१. से किं तं पंचेंदिया ? पंचेंदिया चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा रइया, तिरिक्खजोणिया, मणुस्सा, देवा । [३१] पंचेन्द्रिय का स्वरूप क्या है ? पंचेन्द्रिय चार प्रकार के कहे गये हैं, यथा - नैरयिक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य और देव । विवेचन — निकल गया है इष्टफल जिनमें से वे निरय' हैं अर्थात् नरकावास हैं । उनमें उत्पन्न होने वाले जीव नैरयिक हैं। प्रायः तिर्यक्लोक की योनियों में उत्पन्न होने वाले तिर्यंक्योनिक या तियँकयोनिज हैं । 'मनु' यह मनुष्य की संज्ञा है । मनु की सन्तान मनुष्य हैं। जो सदा सुखोपभोग करते हैं, सुख में रमण करते हैं, व देव हैं । नैरयिक- वर्णन ३२. से किं तं नेरइया । नेरड्या सत्तविहा पण्णत्ता, तं जहा - रयणप्पभापुढविनेरइया जाव अहेसत्तमपुढविनेरइया । समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - पज्जत्ता य अपज्जत्ता य । तेसिं णं भंते! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरया पण्णत्ता, तं जहा - वेडव्विए, तेयए, कम्मए । तेसिं णं भंते! जीवाणं केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा सरीरोगाहणा पण्णत्ता, तं जहा भवधारणिज्जा य उत्तरवेडव्विया य । तत्थ णं जा सा भवधारणिज्जा सा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जो भागो, उक्कोसेणं पंचधाई । तत्थं णं जा सा उत्तरवेउव्विया सा जहण्णेणं अंगुलस्स संखेज्जइभागं उक्कोसेणं धणुसहस्सं । तेसिं णं भंते! जीवाणं सरीरा किंसंघयणा पण्णत्ता ? गोमा ! छहं संघयणाणं असंघयणी; णेवट्टी, णेव छिरा, णेव ण्हारु, णेव संघयणमत्थि, जे पोग्ला अणिट्ठा अकंता, अप्पिया, असुभा, अमणुण्णा अमणामा ते तेसिं संघातत्ताए परिणमंति ? - वृत्ति | १. तत्र अयम् - इष्टफलं कर्म, निर्गतं अयं येभ्यस्तेनिरया नरकावासाः । २. प्रायः तिर्यग्लोके योनयः उत्पत्तिस्थानानि येषां ते तिर्यग्योनिकाः । ३. मनुरिति मनुष्यस्य संज्ञा । मनोरपत्यानि मनुष्याः । ४. दीव्यन्तीति देवाः । - मलयवृत्ति
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy