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________________ ७२] चउरिदिआ अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहाअंधिया, पुत्तिया जाव गोमकीडा, जे यावन्ने तहप्पगारा, ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्ता य अपज्जत्ता य। तेसिं णं भंते ! जीवाणं कतिसरीरगा पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ सरीरगा पण्णत्ता-तं चेव, णवरं सरीरोगाहणा उक्कोसेणं चत्तारि गाउयाई, इंदिया चत्तारि, चक्खुदंसणी, अचक्खुदंसणी, ठिई उक्कोसेण छम्मासा। सेसं जहा तेइंदियाणं जाव असंखेज्जा पण्णत्ता । से तं चउरिदिया। [३०] चतुरिन्द्रिय जीव कौन हैं ? चतुरिन्द्रिय जीव अनेक प्रकार के कहे गये हैं, यथा-अंधिक, पुत्रिक यावत् गोमयकीट, और इसी प्रकार के अन्य जीव। ये संक्षेप से दो प्रकार के हैं-पर्याप्त और अपर्याप्त। हे भगवन् ! उन जीवों के कितने शरीर कहे गये हैं ? गौतम ! तीन शरीर कहे गये हैं। इस प्रकार पूर्ववत् कथन करना चाहिए। विशेषता यह है कि उनकी उत्कृष्ट शरीर-अवगाहना चार कोस की है, उनके चार इन्द्रियाँ हैं, वे चक्षुदर्शनी और अचक्षुदर्शनी हैं, उनकी स्थिति उत्कृष्ट छह मास की है। शेष कथन त्रीन्द्रिय जीवों की तरह जानना चाहिए यावत् वे असंख्यात कहे गये हैं। यह चतुरिन्द्रियों का कथन हुआ। विवेचन-प्रज्ञापनासूत्र में चतुरिन्द्रिय जीवों के भेद इस प्रकार बताये गये हैं अंधिक, पौत्रिक (नेत्रिक), मक्खी, मशक (मच्छर), कीट (टिड्डी), पतंग, ढिंकुण, कुक्कुड, कुक्कुह, नंदावर्त, शृंगिरिट, कृष्णपत्र, नीलपत्र, लोहिपत्र, हरितपत्र, शुक्लपत्र, चित्रपक्ष, विचित्रपक्ष, ओभंजलिका, जलचारिक, गंभीर, नीनिक, तंतव, अक्षिरोट, अक्षिवेध, सारंग, नेवल, दोला, भ्रमर, भरिली, जरुला, तोट्ट, बिच्छू, पत्रवृश्चिक, छाणवृश्चिक, जलवृश्चिक, प्रियंगाल, कनक और गोमयकीट। इसी प्रकार के अन्य प्राणियों को चतुरिन्द्रिय जानना चाहिए। इनके पर्याप्त और अपर्याप्त-दो भेद हैं इत्यादि सब वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। तेवीस द्वारों की विचारणा भी त्रीन्द्रिय जीवों की तरह समझना चाहिए। जो अन्तर है वह इस प्रकार है अवगाहनाद्वार-इनकी अवगाहना उत्कृष्ट चार कोस है। इन्द्रियद्वार-इनके चार इन्द्रियाँ होती हैं। दर्शनद्वार-ये चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शन वाले हैं। स्थितिद्वार-इनकी उत्कृष्ट स्थिति छह मास की है।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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