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________________ [जीवाजीवाभिगमसूत्र (लसोड़ा), सल्लकी (हाथो को प्रिय) मोनकी, मालुक, बकुल (मौलसरी), पलाश (ढाक), करंज (नकमाल); पुत्रजीवक, अरिष्ट (अरीठा), विभीतक (बहेड़ा), हरड, भल्लातक (भिलावा), उम्बेभरिया, खिरनी, धातकी (धावडा) और प्रियाल; पूतिक, (निम्ब), करंज, श्लक्ष्ण, शिंशपा, अशन, पुन्नाग (नागकेसर) नागवृक्ष, श्रीपर्णी और अशोक, ये सब एकास्थिक वृक्ष हैं। इसी प्रकार के अन्य जितने भी वृक्ष हैं जो विभिन्न देशों में उत्पन्न होते हैं तथा जिनके फल में एक ही गुठली हो वे सब एकास्थिक वृक्ष समझने चाहिए। इन एकास्थिक वृक्षों के मूल असंख्यात जीवों वाले होते हैं। इनके कन्द, स्कन्ध, त्वचा (छाल), शाखा और कोंपल भी असंख्यात जीवों वाले होते हैं। किन्तु इनके पत्ते प्रत्येकजीव (एक पत्ते में एक जीव) वाले होते हैं। इनके फूलों में अनेक जीव होते हैं, इनके फलों में एक गुठली होती है। बहुबीजक वृक्षों के नाम पन्नवणासूत्र में इस प्रकार कहे गये हैं-. अस्थिक, तिंदुक, कबीठ, अम्बाडग, मातुलिंग (बिजौरा), बिल्व, आमलक, (आंवला), पनस (अनन्नास), दाडिम, अश्वस्थ (पीपल), उदुम्बर, (गूलर), वट (बड), न्यग्रोध (बड़ा बड); नन्दिवृक्ष, पिप्पली, शतरी, प्लक्ष, कादुम्बरी , कस्तुम्भरी, देवदाली, तिलक, लवक (लकुच-लीची), छत्रोपक, शिरीष, सप्तपर्ण, दधिपर्ण, लोध्र, धव, चन्दन, अर्जुन, नीप, कुरज, (कुटक) और कदम्ब; इसी प्रकार के और भी जितने वृक्ष हैं जिनके फल में बहुत बीज हैं, वे सब बहुबीजक जानने चाहिए। ऊपर जो वृक्षों के नाम गिनाये गये हैं उनमें कतिपय नाम ऐसे हैं जो प्रसिद्ध हैं और कतिपय नाम ऐसे हैं जो देश-विदेश में ही होते हैं। कई नाम ऐसे हैं जो एक ही वृक्ष के सूचक हैं किन्तु उनमें प्रकार भेद समझना चाहिए। भिन्न-भिन्न देशों में भिन्न-भिन्न नाम से कहे जाने के कारण भी अलग से निर्देश समझना चाहिए। बहुबीजकों में आमलक' (आंवला) नाम आया है। वह प्रसिद्ध आंवले का वाचक न होकर अन्य वृक्षविशेष का वाचक समझना चाहिए। क्योंकि बहु-प्रसिद्ध आंवला तो एक बीज वाला है, बहुबीजवाला नहीं। इन बहुबीजक वृक्षों के मूल असंख्यात जीवों वाले होते हैं। इनके कन्द, स्कन्ध, त्वचा, शाखा और प्रवाल (कोंपल) असंख्य जीवात्मक होते हैं। इनके पत्ते प्रत्येकजीवात्मक होते हैं, अर्थात् प्रत्येक पत्ते में एक-एक जीव होता है। इनके पुष्प अनेक जीवोंवाले हैं और फल बहुत बीज वाले हैं। वृक्षों की तरह ही गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली, पर्वग, तृण, वलय, हरित, औषधि, जलरुह और कुहण के विभिन्न प्रकार प्रज्ञापनासूत्र में विस्तार से बताये गये हैं। यहाँ यह शंका उठ सकती है कि यदि वृक्षों के मूल आदि अनेक प्रत्येकशरीरी जीवों से अधिष्ठित
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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