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________________ प्रथम प्रतिपत्ति: साधारण वनस्पति का स्वरूप] [५७ हैं तो वे एक शरीराकार में कैसे दिकाई देते हैं? इस शंका का समाधान सूत्रकार ने दो दृष्टान्तों द्वारा किया सरसो की बट्टी का दृष्टान्त-जैसे सम्पूर्ण अखण्ड सरसों के दानों को किसी श्लेष द्रव्य के द्वारा मिश्रित कर देने पर एक बट्टी बन जाती है परन्तु उसमें वे सरसों के दाने अलग-अलग अपनी अवगाहना में रहते हैं। यद्यपि परस्पर चिपके होने के कारण बट्टी के रूप में वे एकाकार प्रतीत होते हैं फिर भी वे सरसों के दाने अलग-अलग होते हैं। इसी तरह प्रत्येकशरीरी जीवों के शरीरसंघात भी पृथक्-पृथक् अपनी अवगाहना में रहते हैं, परन्तु विशिष्ट कर्मरूपी श्लेष के द्वारा परस्पर मिश्रित होने से एक शरीराकार प्रतीत होते हैं। तिलपपड़ी का दृष्टान्त-जिस प्रकार तिलपपड़ी में प्रत्येक तिल अपनी-अपनी अवगाहना में अलगअलग होता है किन्तु तिलपपड़ी एक है। इसी तरह प्रत्येकशरीरी जीव अपनी-अपनी अहगाहना में स्थित होकर भी एक शरीराकार प्रतीत होते हैं। यह प्रत्येकशरीरी. बादर वनस्पति का वर्णन हुआ। साधारंण वनस्पति का स्वरूप २१. से कि तं साहारणसरीरबादरवणस्सइकाइया ? ___साहारणसरीरबादरवणस्सइकाइयाअणेगविहा पण्णत्ता,तंजहा-आलुए, मूलए, सिंगबेरे, हिरिलि, सिरिलि, सिस्सिरिलि, किट्टिया, छिरिया, छिरियविरालिया, कण्हकंदे, वजकंदे, सूरणकंदे, खल्लूडे, किमिरासि, भद्दे, मोत्थापिंडे, हलिहा, लोहारी, णीहु [ठिहु ], थिभु,अस्सकण्णी, सीहकन्नी, सीउंढी, मूसंढी-जे यावण्णे तहप्पगारा; ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहापजत्तगा य अपजत्तगा य। तेसिंणं भंते ! जीवाणं कति सरीरगा पण्णत्ता? गोयमा ! तओ सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा ओरालिए, तेयए, कम्मए। तहेब जहा बायरपुढविकाइयाणं।णवरं सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं उक्कोसेणं सातिरेगंजोयणसहस्सं। सरीरगा अणित्थंथसंठिया, ठिई जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं दसवाससहस्साइं। जाव दुगतिया, तिआगतिया, परित्ता अणंता पण्णत्ता। से तं बायरवणस्सइकाइया, से तं थावरा। [२१] साधारणशरीर बादर वनस्पतिकायिक कैसे हैं ? साधारण शरीर बादर वनस्पतिकायिक जीव अनेक प्रकार के हैं, जैसे-आलू, मूला, अदरख, हिरिलि, सिरिलि, सिस्सिरिलि, किट्टिका, क्षीरिका, क्षीरविडालिका, कृष्णकन्द, वज्रकन्द, सूरणकन्द, खल्लूट, कृमिराशि, भद्र, मुस्तापिंड, हरिद्रा, लोहारी, स्निहु, स्तिभु, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, सिकुण्डी, मुषण्डी और अन्य भी इस
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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