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प्रथम प्रतिपत्ति: बादर वनस्पतिकायिक ]
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एक-एक जीव वाले होते हैं।
जैसे श्लेष (चिकने) द्रव्य से मिश्रित किये हुए अखण्ड सरसों की बनाई हुई बट्टी एकरूप होती है किन्तु उसमें वे दाने अलग-अलग होते हैं। इसी प्रकार प्रत्येकशरीरियों के शरीरसंघात होते हैं।
जैसे तिलपपड़ी में बहुत सारे अलग-अलग तिल मिले हुए होते हैं उसी तरह प्रत्येकशरीरियों के शरीरसंघात अलग-अलग होते हुए भी समुदाय रूप होते हैं। यह प्रत्येकशरीर बादरवनस्पतिकायिकों का वर्णन हुआ।
विवेचन-बादर नामकर्म का उदय जिनके है वे वनस्पतिकायिक जीव बादर वनस्पतिकायिक कहलाते हैं। इनके दो भेद हैं-प्रत्येकशरीरी और साधारणशरीरी। जिन जीवों का अलग-अलग शरीर है वे प्रत्येकशरीरी हैं और जिन जीवों का सम्मिलित रूप से शरीर है, वे साधारण शरीरी हैं। इन दो सूत्रों में बादर वनस्पतिकायिक जीवों का वर्णन किया गया है।
बादर प्रत्येकशरीरी वनस्पतिकायिक के १२ प्रकार कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं(१) वृक्ष-नीम, आम आदि (२) गुच्छ-पौधे रूप बैंगन आदि (३) गुल्म-पुष्पजाति के पौधे नवमालिका आदि (४) लता-वृक्षादि पर चढ़ने वाली लता, चम्पकलता आदि (५) वल्ली-जमीन पर फैलने वाली वेलें, कूष्माण्डी, त्रपुषी आदि (६) पर्वग-पोर-गांठ वाली वनस्पति, इक्षु आदि (७) तृण-दूब, कास, कुश आदि हरी घास (८) वलय-जिनकी छाल गोल होती है, केतकी, कदली आदि (९) हरित-बथुआ आदि हरी भाजी (१०) औषधि-गेहूं आदि धान्य जो पकने पर सूख जाते हैं (११) जलरुह-जल में उगने वाली वनस्पति, कमल, सिंघाड़ा आदि (१२) कुहण-भूमि के फोड़कर उगने वाली वनस्पति, जैसे कुकुरमुत्ता (छत्राक)
वृक्ष दो प्रकार के हैं-एक बीज वाले और बहुत बीज वाले। जिसके प्रत्येक फल में एक गुठली या बीज हो वह एकास्थिक है और जिनके फल में बहुत बीज हों वे बहुबीजक हैं।
एकास्थिक वृक्षों में से नीम, आम आदि कुछ वृक्षों के नाम सूत्र में गिनाए हैं और शेष प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार जानने की सूचना दी गई है। प्रज्ञापनासूत्र में एकास्थिक वृक्षों के नाम इस प्रकार गिनाये हैं'नीम, आम, जामुन, कोशम्ब (जंगली आम), शाल, अंकोल्ल, (अखरोट या पिश्ते का पेड़), पीलु, शेलु
१. प्रज्ञापनासूत्र, प्रथमपद, गाथा १३-१४-१५