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________________ ५२ औपपातिकसूत्र मुर्गी के अंडे के परिमाण के १२ ग्रास भोजन करना अपार्ध —अर्ध से कम अवमोदरिका है। मुर्गी के अंडे के परिमाण के सोलह ग्रास भोजन करना द्विभागप्राप्त या अर्ध अवमोदरिका है। मुर्गी के अंडे के परिमाण के चौबीस ग्रास भोजन करना-चौथाई अवमोदरिका है। मुर्गी के अंडे के परिमाण के इकतीस ग्रास भोजन करना किञ्चित् न्यून—कुछ कम अवमोदरिका है। मुर्गी के अंडे के परिमाण के बत्तीस ग्रास भोजन करने वाला प्रमाणप्राप्त—पूर्ण आहार करने वाला है। अर्थात् बत्तीस ग्रास भोजन परिपूर्ण आहार है। इससे एक ग्रास भी कम आहार करने वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ अधिक आहार करने वाला कहे जाने योग्य नहीं है। भाव-अवमोदरिका क्या है—कितने प्रकार की है ? भाव-अवमोदरिका अनेक प्रकार की बतलाई गई है, जैसे—क्रोध, मान (अहंकार), माया (प्रवञ्चना, छलना) और लोभ का त्याग (अभाव) अल्पशब्द-क्रोध आदि के आवेश में होनेवाली शब्द-प्रवृत्ति का त्याग, अल्पझंझ–कलहोत्पादक वचन आदि का त्याग। यहां 'अल्प' शब्द का प्रयोग निषेध या अभाव के अर्थ में है, जिसका तात्पर्य यह है कि क्रोध आदि का उदय तो होता है पर साधक आत्मबल द्वारा उसे टाल देता है, उभार में नहीं आने देता अथवा तदुत्पादक निमित्तों से स्वयं हट जाता है। भिक्षाचर्या क्या है—उसके कितने भेद हैं ? भिक्षाचर्या अनेक प्रकार की बतलाई गई है, जैसे—१. द्रव्याभिग्रहचर्या खाने-पीने आदि से सम्बद्ध वस्तुओं के विषय में विशेष प्रतिज्ञा—अमुक वस्तु अमुक स्थिति में मिले तो ग्रहण करना—इस प्रकार भिक्षा के सन्दर्भ में विशेष अभिग्रह स्वीकार करना, २. क्षेत्राभिग्रहचर्या ग्राम, नगर, स्थान आदि से सम्बद्ध प्रतिज्ञा स्वीकार करना, ३. कालाभिग्रहचर्या–प्रथम पहर, दूसरा पहर आदि समय से सम्बद्ध प्रतिज्ञा स्वीकार करना, ४. भावाभिग्रहचर्या—हास, गान, विनोद, वार्ता आदि में संलग्न स्त्री-पुरुष आदि से सम्बद्ध अभिग्रह–प्रतिज्ञा स्वीकार करना, ५. उत्क्षिप्तचर्या—भोजन पकाने के बर्तन से गृहस्थ द्वारा अपने प्रयोजन हेतु निकाला हुआ आहार लेने का अभिग्रह–प्रतिज्ञा लिये रहना, ६: निक्षिप्तचर्या भोजन पकाने के बर्तन से नहीं निकाला हुआ आहार ग्रहण करने की प्रतिज्ञा करना, ७. उक्षिप्त-निक्षिप्त-चर्या-भोजन पकाने के बर्तन से निकाल कर उसी जगह या दूसरी जगह रखा हुआ आहार अथवा अपने प्रयोजन से निकाला हुआ या नहीं निकाला हुआ—दोनों प्रकार का आहार ग्रहण करने की प्रतिज्ञा स्वीकार करना, ८. निक्षिप्त-उक्षिप्तचर्या भोजन पकाने के बर्तन में से निकाल कर अन्यत्र रखा हुआ, फिर उसी में से उठाया हुआ आहार ग्रहण करने की प्रतिज्ञा स्वीकार करना, ९. वर्तिष्यमाण-चर्या–खाने हेतु परोसे हुए भोजन में से भिक्षा ग्रहण करने की प्रतिज्ञा लिए रहना, १०. सैह्रियमाणचर्या—जो भोजन ठंडा करने के लिए पात्र आदि में फैलाया गया हो, फिर समेट कर पात्र आदि में डाला जा रहा हो, ऐसे (भोजन) में से आहार आदि लेने की प्रतिज्ञा करना, ११. उपनीतचर्या किसी के द्वारा किसी के लिए उपहार रूप में भेजी गई भोजनसामग्री में से भिक्षा ग्रहण करने की प्रतिज्ञा लेना, १२. अपनीतचर्या किसी को दी जाने वाली भोज्य-सामग्री में से निकालकर अन्यत्र रखी सामग्री में से भिक्षा ग्रहण करने की प्रतिज्ञा स्वीकार किये रहना, १३. उपनीतापनीतचर्या स्थानान्तरित की हुई भोजनोपहार सामग्री में से आहार लेने की प्रतिज्ञा स्वीकार करना अथवा दाता द्वारा पहले किसी अपेक्षा से गुण तथा बाद में किसी अपेक्षा से अवगुण-कथन के साथ दी जाने वाली भिक्षा स्वीकार करने की प्रतिज्ञा लेना, १४. अपनीतोपनीत-चर्या किसी के लिए उपहार रूप में भेजने हेतु
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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