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तप का विवेचन
२९- वे साधु भगवान् वर्षावास–चातुर्मास्य के चार महीने छोड़कर ग्रीष्म तथा हेमन्त शीतकाल—दोनों के आठ महीनों तक किसी गाँव में एक रात (दिवसक्रम से एक सप्ताह) तथा नगर में पाँच रात (पञ्चम सप्ताह में विहार अर्थात् उनतीस दिन) निवास करते थे। चन्दन जैसे अपने को काटने वाले वसूले को भी सुगंधित बना देता है, उसी प्रकार वे (साधु) अपना
। वाले का भी उपकार करने की वृत्ति रखते थे। अथवा अपने प्रति वसूले के समान क्रूर व्यवहार करनेवाले–अपकारी तथा चन्दन के समान सौम्य व्यवहार करनेवाले उपकारी—दोनों के प्रति राग-द्वेष-रहित समान भाव लिये रहते थे। वे मिट्टी के ढेले और स्वर्ण को एक समान समझते थे। सुख और दुःख में समान भाव रखते थे। वे ऐहिक तथा पारलौकिक आसक्ति से बंधे हुए नहीं थे—अनासक्त थे। वे संसारपारगामी-नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य, देव-चतुर्गतिरूप संसार के पार पहुंचने वाले मोक्षाभिगामी तथा कर्मों का निर्घातन–नाश करने हेतु अभ्युत्थित-उठे हुए—प्रयत्नशील होते हुए विचरण करते थे।
विवेचन प्रस्तुत सूत्र में साधुओं के लिए ग्राम में एकरात्रिक तथा नगर में पञ्चरात्रिक प्रवास का उल्लेख हुआ है। जैसा कि वृत्तिकार ने संकेत किया है, वह प्रतिमाकल्पिकों को उद्दिष्ट करके है। साधारणतः साधुओं के लिए मासकल्प विहार विहित है। यहाँ अनुवाद में एकरात्रिक तथा पञ्चरात्रिक का जो अर्थ किया गया है, वह परम्परानुसृत है, सर्व-सामान्य विधान है। तप का विवेचन
३०-तेसिं णं भगवंताणं एएणं विहारेणं विहरमाणाणं इमे एयारूवे अभितरबाहिरए तवोवहाणे होत्था। तं जहा—अभितरए छव्विहे, बाहिरए वि छविहे।
से किं तं बाहिरए ? बाहिरए छव्विहे, पण्णत्ते। तं जहा–१ अणसणे २ ओमोयरिया ३ भिक्खायरिया ४ रसपरिच्चाए ५ कायकिलेसे ६ पडिसंलीणया।
से किं तं अणसणे ? अणसणे दुविहे पण्णत्ते। तं जहा–१ इत्तरिए य २ आवकहिए य।
से किं तं इत्तरिए ? अणेगविहे पण्णत्ते। तं जहा–१ चउत्थभत्ते २ छट्ठभत्ते ३ अट्ठमभत्ते ४ दसमभत्ते ५ बारसभत्ते ६ चउद्दसभत्ते ७ सोलसभत्ते ८ अद्धमासिए भत्ते ९ मासिए भत्ते १० दोमासिए भत्ते ११ तेमासिए भत्ते १२ चउमासिए भत्ते १३ पंचमासिए भत्ते १४ छम्मासिए भत्ते, से तं इत्तरिए।
से किं तं आवकहिए ? आवकहिए दुविहे पण्णत्ते। तं जहा—१ पाओवगमणे य २ भत्तपच्चक्खाणे य।
से किं तं पाओवगमणे ? पाओवगमणे दुविहे पण्णत्ते। तं जहा–१ वाघाइमे य २ निव्वाघाइमे य नियमा अप्पडिकम्मे। से तं पाओवगमणे।
१. 'गामे एगराइय' ति एकरात्रो वासमानतया अस्ति येषां ते एकरात्रिकाः, एवं नगरे पञ्चरात्रिका इति, एतच्च प्रतिमाकल्पिकानाश्रित्योक्तम्, अन्येषां मासकल्पविहारित्वादिति।
- औपपातिक सूत्र वृत्ति, पत्र ३६