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औपपातिकसूत्र सर्वथा विप्रमुक्त-मुक्तपरिकर, अनियतवास–परिवार, परिजन आदि से मुक्त तथा निश्चित निवासरहित, मेरु पर्वत के समान अप्रकम्प–अनुकूल, प्रतिकूल स्थितियों में, परिषहों में अविचल, शरद् ऋतु के जल के समान शुद्ध हृदययुक्त, गेंडे के सींग के समान एकजात-राग आदि विभावों से रहित, एकमात्र आत्मनिष्ठ, भारण्ड' पक्षी के समान अप्रमत्त—प्रमादरहित, जागरूक, हाथी के सदृश शौण्डीर—कषाय आदि को जीतने में शक्तिशाली, बलोन्नत, वृषभ के समान धैर्यशील सुस्थिर, सिंह के समान दुर्धर्ष—परिषहों, कष्टों से अपराजेय, पृथ्वी के समान सभी शीत, उष्ण, अनुकूल, प्रतिकूल स्पर्शों को समभाव से सहने में सक्षम तथा घृत द्वारा भली भाँति हुत-हवन की हुई अग्नि के समान तेज से जाज्वल्यमान—ज्ञान तथा तप के तेज से दीप्तिमान् थे। .
२८- नत्थि णं तेसि णं भगवंताणं कत्थइ पडिबंधे भवइ। से य पडिबंधे चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा—दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओ णं सचित्ताचित्तमीसिएसु दव्वेसु। खेत्तओ गामे वा णयरे वा रणे वा खेत्ते वा खले वा घरे वा अंगणे वा। कालओ समए वा, आवलियाए वा, जाव (आणापाणुए वा थोवे वा लवे वा मुहुत्ते वा अहोरत्ते वा पक्खे वा मासे वा) अयणे वा, अण्णयरे वा दीहकालसंजोगे। भावओ कोहे वा माणे वा मायाए वा लोहे वा भए वा हासे वा। एवं तेसिं ण भवइ।
२८– उन पूजनीय साधुओं के किसी प्रकार का प्रतिबन्ध रुकावट या आसक्ति का हेतु नहीं था।
प्रतिबन्ध चार प्रकार का कहा गया है—द्रव्य की अपेक्षा से, क्षेत्र की अपेक्षा से, काल की अपेक्षा से तथा भाव की अपेक्षा से।
__ द्रव्य की अपेक्षा से सचित्त अचित्त तथा मिश्रित द्रव्यों में, क्षेत्र की अपेक्षा से गाँव, नगर, खेत, खलिहान, घर तथा आँगन में, काल की अपेक्षा से समय आवलिका, (आनप्राण, थोव—स्तोक, लव, मुहूर्त, दिन-रात, पक्ष, मास,) अयन छह मास एवं अन्य दीर्घकालिक संयोग में तथा भाव की अपेक्षा से क्रोध, अहंकार, माया, लोभ, भय या हास्य में उनका कोई प्रतिबन्ध —आसक्ति भाव नहीं था।
२९– ते णं भगवंतो वासावासवजं अट्ठ गिम्हहेमंतियाणि मासाणि गामे एगराइया, णयरे पंचराइया, वासीचंदणसमाणकप्पा, समलेठु-कंचणा, समसुह-दुक्खा, इहलोग-परलोगअप्पडिबद्धा, संसारपारगामी, कम्मणिग्घायणट्ठाए अब्भुट्ठिया विहरंति।
ऐसी मान्यता है, भारण्ड पक्षी के एक शरीर, दो सिर तथा तीन पैर होते हैं। उसकी दोनों ग्रीवाएं अलग-अलग होती हैं। यों वह दो पक्षियों का समन्वित रूप लिये होता है। उसे अपने जीवन-निर्वाह हेतु खानपान आदि क्रियाओं में अत्यन्त प्रमादरहित या जागरूक रहना होता है। समय-काल का अविभाज्य भाग। आवलिका–असंख्यात समय। आनपान–आनप्राण-उच्छ्वास-निःश्वास का काल। थोक स्तोक-सात उच्छ्वास-नि:श्वास जितना काल। लक-सात थोव जितना काल। मुहूर्त सतहत्तर लव जितना काल।
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