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________________ २८ औपपातिकसूत्र अष्टम वर्ग के द्वितीय अध्ययन में महाराज श्रेणिक की एक दूसरी रानी सुकाली का वर्णन है। उसने भी श्रमण भगवान् महावीर से दीक्षा ग्रहण की। उसने आर्याप्रमुखा चन्दनबाला की आज्ञा से कनकावली तप करना स्वीकार किया। रत्नावली और कनकावली तप में थोड़ा सा अन्तर है। अतः वहाँ रत्नावली तप से कनकावली तप में जो विशेषता है, उसकी चर्चा कर दी गई है। कनकावली का अर्थ सोने का हार है। रत्नों के हार से सोने का हार कुछ अधिक भारी होता है। इसी आधार पर रत्नावली की अपेक्षा कनकावली कुछ भारी तप है। कनकावली अन्तकृद्दशांग सूत्र के अनुसार कनकावली तप का स्वरूप इस प्रकार है साधक सबसे पहले एक (दिन का) उपवास, तत्पश्चात् क्रमशः दो दिन का उपवास—एक बेला, तीन दिन का उपवास-एक तेला, फिर एक साथ आठ तेले, फिर उपवास, बेला, तेला, चार दिन, पांच दिन, छह दिन. सात दिन, आठ दिन, नौ दिन, दश दिन, ग्यारह दिन, बारह दिन, तेरह दिन, चवदह दिन, पन्द्रह दिन तथा सोलह दिन का उपवास करे। तदनन्तर एक साथ चोंतीस तेले करे। फिर सोलह दिन, पन्द्रह दिन, चवदह दिन, तेरह दिन, बारह दसमं अट्ठमं बत्तीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चोद्दसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । चोत्तीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । बारसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चोत्तीसं छट्ठाई करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चोत्तीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। बत्तीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। तीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। अट्ठावीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। अट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। छव्वीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। छट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चउवीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । बावीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। अट्ठ छट्ठाई करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। वीसइमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारे।। अट्ठमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ । अट्ठारसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। छटुं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। सोलसमं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। चउत्थं करेइ, करेत्ता सव्वकामगुणियं पारेइ। एवं खलु एसा रयणावलीए तवोकम्मस्स पढमा परिवाडी एगेणं संवच्छरेणं तिहिं मासेहिं बावीसाए य अहोरत्तेहिं अहासुत्तं जाव (अहाअत्थं, अहातच्चं, अहामग्गं, अहाकप्पं, सम्मं कारणं फासिया, पालिया, सोहिया, तीरिया, किट्टिया) आराहिया भवइ। -अन्तकृद्दशासूत्र १४७, १४८ तए णं सुकाली अज्जा अण्णया कयाइ जेणेव अजचंदणा अज्जा जाव (तेणेव उवागया, उवागच्छिता एवं वयासी) इच्छामि णं अज्जाओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणी कणगावली-तवोकम्मं उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए। एवं जहा रयणावली तहा कणगावली वि, नवरं-तिसु ठाणेसु अट्ठमाई करेइ, जहिं रयणावलीए छट्ठाई। एक्काए परिवाडीए संवच्छरो पंच मासा बारस य अहोरत्ता। वउण्हं पंच वरिसा नव मासा अट्ठारस दिवसा। सेसं तहेव। - अन्तकृद्दशा सूत्र, पृष्ठ १५४
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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