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औपपातिकसूत्र
थे। कई मध्वास्रव ऐसे थे, जिनके वचन मधु शहद के समान सर्वदोषोपशामक तथा आह्लादजनक थे। कई सर्पिआस्रव थे, जो अपने वचनों द्वारा घृत की तरह स्निग्धता उत्पन्न करने वाले थे।
कई अक्षीणमहानसिक-ऐसे थे, जो जिस घर से भिक्षा ले आएं, उस घर की बची हुई भोज्य सामग्री जब तक भिक्षा देनेवाला स्वयं भोजन न कर ले, तब तक लाख मनुष्यों को भोजन करा देने पर भी समाप्त नहीं होती।
कई ऋजुमति' तथा कई विपुलमति' मनःपर्यवज्ञान के धारक थे।
कई विकुर्वणा—भिन्न-भिन्न रूप बना लेने की शक्ति से युक्त थे। कई चारण-गति-सम्बन्धी विशिष्ट क्षमता लिये हुए थे। कई विद्याधरप्रज्ञप्ति आदि विद्याओं के धारक थे। कई आकाशातिपाती—आकाशगामिनी शक्ति-सम्पन्न थे अथवा आकाश से हिरण्य आदि इष्ट तथा अनिष्ट पदार्थों की वर्षा कराने का जिनमें सामर्थ्य था अथवा आकाशातिवादी—आकाश आदि अमूर्त पदार्थों को सिद्ध करने में जो समर्थ थे।
कई कनकाबली तप करते थे। कई एकावली तप करते थे। कई लघुसिंहनिष्क्रीडित तप करने वाले थे तथा कई महासिंहनिष्क्रीडित तप करने में संलग्न थे। कई भद्रप्रतिमा, महाभद्रप्रतिमा, सर्वतोभद्रप्रतिमा तथा आयंबिलवर्द्धमान तप करते थे।
कई एकमासिक भिक्षुप्रतिमा, इसी प्रकार (द्वैमासिक भिक्षुप्रतिमा, त्रैमासिक भिक्षुप्रतिमा, चातुर्मासिक भिक्षुप्रतिमा, पाञ्चमासिक भिक्षुप्रतिमा, पाण्मासिक भिक्षुप्रतिमा, तथा) साप्तमासिक भिक्षुप्रतिमा ग्रहण किये हुए थे। कई प्रथम सप्तरात्रिन्दिवा सात रात-दिन की भिक्षुप्रतिमा, (कई द्वितीय सप्तरात्रिन्दिवा भिक्षुप्रतिमा) तथा कई तृतीय सप्तरात्रिन्दिवा भिक्षुप्रतिमा के धारक थे। कई एक रातदिन की भिक्षुप्रतिमा ग्रहण किये हुए थे। कई सप्तसप्तमिका सात-सात दिनों की सात इकाइयों या सप्ताहों की भिक्षुप्रतिमा के धारक थे। कई अष्टअष्टमिका—आठ-आठ दिनों की आठ इकाइयों की भिक्षुप्रतिमा के धारक थे। कई नवनवमिका–नौ-नौ दिनों की नौ इकाइयों की भिक्षुप्रतिमा के धारक थे। कई दशदशमिका—दश-दश दिनों की दश इकाइयों की भिक्षुप्रतिमा के धारक थे। कई लघुमोकप्रतिमा, कई यवमध्यचन्द्रप्रतिमा तथा कई वज्रमध्यचन्द्रप्रतिमा के धारक थे।
विवेचन– तपश्चर्या के बारह भेदों में पहला अनशन है। अनशन का अर्थ तीन या चार आहारों का त्याग करना है। चारों आहारों का त्याग कर देने पर कुछ नहीं लिया जा सकता। तीन आहारों के त्याग में केवल प्रासुक पानी लिया जा सकता है। इसकी अवधि कम से कम एक दिन (दिन-रात) है, अधिक से अधिक छह मास है। समाधिमरणकालीन अनशन जीवनपर्यन्त होता है।
तपश्चर्या से संचित कर्म निर्जीण होते हैं कटते हैं। ज्यों-ज्यों कर्मों का निर्जरण होता जाता है, ज्यों-ज्यों
समनस्क जीवों के मन का अर्थात् मन की चिन्तन के अनुरूप होने वाली पर्यायों को सामान्य रूप से जिसके द्वारा जाना जाता है, वह ऋजुमति मनःपर्यवज्ञान कहा जाता है। समनस्क जीवों के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव आदि अपेक्षाओं से सविशेष रूप में मन अर्थात् मानसिक चिन्तन के अनुरूप होने वाली पर्यायों को जिसके द्वारा जाना जाता है, उसे विपुलमति मनःपर्यवज्ञान कहा जाता है। अनशन, अवमौदर्य—ऊनोदरी, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्तशय्यासन, कायक्लेश, प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्त्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग तथा ध्यान।
-तत्त्वार्थसूत्र ९.१९-२० अशन, खाद्य, स्वाद्य। अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य।
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