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________________ ज्ञानी, शक्तिधर, तपस्वी महालयं सीहनिक्कीलियं तवोकम्मं पडिवण्णा, भद्दपडिमं, महाभद्दपडिमं सव्वओभद्दपडिमं, आयंबिलवद्धमाणं तवोकम्मं पडिवण्णा, मासियं भिक्खुपडिमं एवं दोमासियं पडिमं, तिमासियं पडिमं जाव (चउमासियं पडिमं, पंचमासियं पडिमं, छमासिय पडिमं ) सत्तमासियं भिक्खुपडिमं पडिवण्णा, पढमं सत्तराइंदियं भिक्खुपडिमं पडिवण्णा जाव ( बीयं सत्तराइंदियं भिक्खुपडिमं पडिवण्णा, ) तच्चं सत्तराइंदियभिक्खुपडिमं पडिवण्णा, 'अहोराइंदियं भिक्खुपडिमं पडिवण्णा, एक्कराईदियं भिक्खुपडिमं पडिवण्णा, सत्तसत्तमियं भिक्खुपडिमं, अट्ठअठ्ठमियं भिक्खुपडिमं णवणवमियं भिक्खुपडिमं, दसदसमियं भिक्खुपडिमं, खुड्डिय मोयपडिमं पडिवण्णा, महल्लियं मोयपडिमं पडिवण्णा, जवमज्झं चंदपडिमं पडिवण्णा, वइरमज्झं चंदपडिमं पडिवण्णा संजमेण, तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति । २५ २४— उस समय श्रमण भगवान् महावीर के अन्तेवासी बहुत से निर्ग्रन्थ संयम तथा तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरण करते थे । उनमें कई मतिज्ञानी (श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनः पर्यवज्ञानी) तथा केवलज्ञानी थे । अर्थात् कई मति तथा श्रुत, कई मति, श्रुत तथा अवधि, या मति, श्रुत एवं मनः पर्यव, कई मति, श्रुत, अवधि तथा मनः पर्यव—यों दो, तीन, चार ज्ञानों के धारक एवं कई केवलज्ञान के धारक थे। कई मनोबल —— मनोबल या मनःस्थिरता के धारक, वचनबली — प्रतिज्ञात आशय के निर्वाहक या परपक्ष को क्षुभित करने में सक्षम वचन - शक्ति के धारक तथा कायबली — भूख, प्यास, सर्दी, गर्मी आदि प्रतिकूल शारीरिक स्थितियों को अग्लान भाव से सहने में समर्थ थे । अर्थात् कइयों में मनोबल, वचनबल तथा कायबल— तीनों का वैशिष्ट्य था, कइयों में वचनबल तथा कायबल - दो का वैशिष्ट्य था और कइयों में कायबल का वैशिष्ट्य था। कई मन शाप अपकार तथा अनुग्रह —उपकार करने का सामर्थ्य रखते थे, कई वचन द्वारा अपकार एवं उपकार करने में सक्षम थे तथा कई शरीर द्वारा अपकार व उपकार करने में समर्थ थे 1 कई खेलौषधिप्राप्त——खंखार से रोग मिटाने की शक्ति से युक्त थे। कई शरीर के मैल, मूत्रबिन्दु, विष्ठा तथा हाथ आदि के स्पर्श से रोग मिटा देने की विशेष शक्ति प्राप्त किये हुए थे। कई ऐसे थे, जिनके बाल, नाखून, रोम, मल आदि सभी औषधिरूप थे—वे इन से रोग मिटा देने की क्षमता लिये हुए थे । ( ये लब्धिजन्य विशेषताएँ थीं ) । कई कोष्ठबुद्धिकुशूल या कोठार में भरे हुए सुरक्षित अन्न की तरह प्राप्त सूत्रार्थ को अपने में ज्यों का त्यों धारण किये रहने की बुद्धिवाले थे। कई बीजबुद्धि-विशाल वृक्ष को उत्पन्न करने वाले बीज की तरह विस्तीर्ण, विविध अर्थ प्रस्तुत करनेवाली बुद्धि से युक्त थे। कई पटबुद्धिविशिष्ट वक्तृत्व रूपी वनस्पति से प्रस्फुटित विविध, प्रचुर सूत्रार्थ रूपी पुष्पों और फलों को संगृहीत करने में समर्थ बुद्धि लिये हुए थे। कई पदानुसारी — सूत्र के एक अवयव या पद के ज्ञात होने पर उसके अनुरूप सैकड़ों पदों का अनुसरण करने की बुद्धि लिए हुए थे । कई संभिन्न श्रोता बहुत प्रकार के भिन्न-भिन्न शब्दों को, जो अलग-अलग बोले जा रहे हों, एक साथ सुनकर स्वायत्त करने की क्षमता लिये हुए थे । अथवा जिनकी सभी इन्द्रियाँ शब्द ग्रहण में सक्षम थीं— कानों के अतिरिक्त जिनकी दूसरी इन्द्रियों में भी शब्दग्रहिता की विशेषता थी । कई क्षीरात्र——–दूध के समान मधुर, श्रोताओं के श्रवणेन्द्रिय और मन को सुहावने लगने वाले वचन बोलते
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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