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औपपातिकसूत्र ८-ते णं तिलया जाव' णंदिरुक्खा अण्णेहिं बहूहिं पउमलयाहिं, णागलयाहिं, असोअलयाहिं, चंपगलयाहिं, चूयलयाहिं, वणलयाहिं, वासंतियलयाहिं, अइमुत्तयलयाहिं, कुंदलयाहिं, सामलयाहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता ।
८-वे तिलक, नन्दिवृक्ष आदि पादप अन्य बहुत सी पद्मलताओं, नागलताओं, अशोकलताओं, चम्पकलताओं, सहकारलताओं, पीलुकलताओं, वासन्तीलताओं तथा अतिमुक्तकलताओं से सब ओर से घिरे हुए थे।
९- ताओ णं पउमलयाओ णिच्चं कुसुमियाओ जाव (णिच्चं माइयाओ, णिच्चं लवइयाओ, णिच्चं थवइयाओ, णिच्चं गुलइयाओ, णिच्चं गोच्छियाओ, णिच्चं जमलियाओ, णिच्चं जुवलियाओ, णिच्चं विणमियाओ, णिच्चं पणमियाओ, णिच्चं कुसुमिय-माइय-लवइय-थवइय-गुलइय-गोच्छियजमलिय-जुवलिय-विणमिय-पणमियसुविभत्तपिंडमंजरिवडिंसयधराओ,) पासादीयाओ, दरिसणिज्जाओ, अभिरूवाओ, पडिरूवाओ।
९-वे लताएं सब ऋतुओं में फूलती थीं (मंजरियों, पत्तों, फूलों के गुच्छों तथा पत्तों के गुच्छों से युक्त रहती थीं। वे सदा समश्रेणिक तथा युगल रूप में अवस्थित थीं। वे पुष्प, फल आदि के भार से सदा विनमित-बहुत झुकी हुई, प्रणमित—विशेष रूप से अभिनत—नमी हुई थीं। यों विविध प्रकार से अपनी विशेषताएँ लिये हुए वे लताएँ अपनी सुन्दर लुम्बियों तथा मंजरियों के रूप में मानो शिरोभूषण–कलंगियाँ धारण किये रहती थीं।) वे रमणीय, मनोरम, दर्शनीय, अभिरूप मन को अपने में रमा लेने वाली तथा प्रतिरूप मन में बस जाने वाली थीं। शिलापट्टक
१०- तस्स णं असोगवरपायवस्स हेट्ठा ईसिं खंधसमल्लीणे एत्थ णं महं एक्के पुढविसिलापट्टए पण्णत्ते विक्खंभायामउस्सेहसुप्पमाणे, किण्हे, अंजण-घण-किवाण-कुवलय-हलहरकोसेज्जागास-केसकज्जलंगीखंजण-सिंगभेद-रिट्ठय-जंबूफल-असणग-सण-बंधण-णीलुप्पलपत्तनिकर-अयसिकुसुमप्पगासे, मरगय-मसारकलित्त-णयणकीयरासिवण्णे, णिद्धघणे, अट्ठसिरे, आयसयतलोवमे, सुरम्मे, ईहामियउसभ-तुरग-णर-मगर-विहग-वालग-किण्णर-रुरु-सरभ-चमर-कुंजर-वणलय-पउमलय-भत्तिचित्ते, आईणग-रूय-बूर-णवणीय-तूलफरिसे, सीहासणसंठिए, पासादीए, दरिसणिजे, अभिरूवे, पडिरूवे।
१०- उस अशोक वृक्ष के नीचे, उसके तने के कुछ पास एक बड़ा पृथिवी-शिलापट्टक-चबूतरे की ज्यों जमी हुई मिट्टी पर स्थापित शिलापट्टक था। उसकी लम्बाई, चौड़ाई तथा ऊँचाई समुचित प्रमाण में थी। वह काला था। वह अंजन (वृक्षविशेष), बादल, कृपाण, नीले कमल, बलराम के वस्त्र, आकाश, केश, काजल की कोठरी, खंजन पक्षी, भैंस के सींग, रिष्टक रत्न, जामुन के फल, बीयक (वनस्पतिविशेष), सन के फूल के डंठल, नील कमल के पत्तों की राशि तथा अलसी के फूल के सदृश प्रभा लिये हुए था।
नील मणि, कसौटी, कमर पर बाँधने के चमड़े के पट्टे तथा आँखों की कनीनिका तारे—इनके पुंज जैसा उसका वर्ण था। वह अत्यन्त स्निग्ध-चिकना था। उसके आठ कोने थे। वह दर्पण के तल के समान सुरम्य था।
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देखें सूत्र संख्या ७