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कहलाया कि बुद्ध भी क्षत्रिय थे, मैं भी क्षत्रिय हूँ, अतः अवशेषों का एक भाग मुझे मिलना चाहिए। द्रोण विप्र की सलाह से उसे एक अस्थिभाग मिला और उसने उस पर एक स्तूप बनवाया।
यह सहज ही जिज्ञासा हो सकती है कि अजातशत्रु कूणिक जैन था या बौद्ध था? उत्तर में निवेदन है कि प्रस्तुत आगम में जो वर्णन है, उसके सामने सामञफलसुत्त का वर्णन शिथिल है, उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है। सामञफलस ही वर्णन है कि आज से भगवान् मुझे अंजलिबद्ध शरणागत उपासक समझें पर प्रस्तुत आगम में श्रमण भगवान् महावीर के प्रति अनन्य भक्ति कूणिक की प्रदर्शित की गई है। उसने एक प्रवृत्ति-वादुक (संवाददाता) व्यक्ति की नियुक्ति की थी। उसका कार्य था भगवान् महावीर की प्रतिदिन की प्रवृत्ति से उसे अवगत कराते रहना। उसकी सहायता के लिए अनेक कर्मकर नियुक्त थे, उनके माध्यम से भगवान् महावीर के प्रतिदिन के समाचार उस प्रवृत्ति-वादुक को मिलते और वह राजा कूणिक को बताता था। उसे कूणिक विपुल अर्थदान देता था। प्रवृत्ति-वादुक द्वारा समाचार ज्ञात होने पर भक्ति-भावना से विभोर होकर अभिवन्दन करना, उपदेश श्रवण के लिए जाना और निर्ग्रन्थ धर्म पर अपनी अनन्य श्रद्धा व्यक्त करना। इस वर्णन के सामने तथागत बुद्ध के प्रति जो उसकी श्रद्धा है, वह केवल औपचारिक है।*
अजातशत्रु कूणिक का बुद्ध से साक्षात्कार केवल एक बार होता है, पर महावीर से उसका साक्षात्कार अनेक बार होता है। भगवान महावीर के परिनिर्वाण के पश्चात् भी महावीर के उत्तराधिकारी गणधर सुधर्मा की धर्म-सभा में भी वह उपस्थित होता है।"
डा. स्मिथ का मन्तव्य है-बौद्ध और जैन दोनों ही अजातशत्रु को अपना-अपना अनुयायी होने का दावा करते हैं, पर लगता है जैनों का दावा अधिक आधारयुक्त है।३५ ।
डॉ. राधाकुमुद मुखर्जी ने लिखा है-महावीर और बुद्ध की वर्तमानता में तो अजातशत्रु महावीर का ही अनुयायी था। उन्होंने आगे चलकर यह भी लिखा है, जैसा प्रायः देखा जाता है, जैन अजातशत्रु और उदाईभद्द दोनों को अच्छे चरित्र का बतलाते हैं। क्योंकि दोनों जैनधर्म को मानने वाले थे। यही कारण है कि बौद्ध ग्रन्थों में उनके चरित्र पर कालिख पोती गई
अजातशत्रु बुद्ध का अनुयायी नहीं था, इसके भी अनेक कारण हैं१. अजातशत्रु की देवदत्त के साथ मित्रता थी, जबकि देवदत्त बुद्ध का विरोधी शिष्य था। . २. अजातशत्रु की वज्जियों के साथ शत्रुता थी, वजी लोग बुद्ध के परम भक्तों में थे। ३. अजातशत्रु ने प्रसेनजित् के साथ युद्ध किया, जबकि प्रसेनजित बुद्ध का परम भक्त और अनुयायी था।
तथागत बद्ध की अजातशत्र के प्रति सदभावना नहीं थी। उन्होंने अजातशत्र के सम्बन्ध में अपने भिक्षओं को कहा इस राजा का संस्कार अच्छा नहीं है। यह राजा अभागा है। यदि यह राजा अपने धर्म राज-पिता की हत्या न करता तो
३२. बुद्धचर्या, पृ. ५०९
आगम और त्रिपिटिक : एक अनुशीलन, पृ. ३३३ ३३. स्थानांगवृत्ति, स्था. ४, उ. ३ ३४. (क) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, सूत्र १-५
(ख) परिशिष्ट पर्व, सर्ग ४, श्लो. १५-५४ ३५. Both Buddhists and Jains claimed his one of Themselves. The Jain claim appears to be
well founded-Oxford History of India by V.A. Smith, Second Edition Oxford 1923,
P.51 ३६. हिन्दू सभ्यता, पृ. १९०-१ ३७. हिन्दू सभ्यता, पृ. २६४
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