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________________ १५६ औपपातिकसूत्र सकते। अतः यही न्याय-संगत है कि कर्म आत्मा के साथ बंधते नहीं, आत्मा का केवल संस्पर्श करते हैं। दुर्बलिका पुष्यमित्र ने गोष्ठामाहिल को वस्तु-स्थिति समझाने का प्रयत्न किया पर गोष्ठामाहिल ने अपना दुराग्रह नहीं छोड़ा तथा अबद्धिकवाद का प्रवर्तन किया। बहुरतवाद भगवान् महावीर के कैवल्य-प्राप्ति के चौदह वर्ष पश्चात्, जीवप्रादेशिकवाद कैवल्य-प्राप्ति के सोलह वर्ष पश्चात्, अव्यक्तवाद भगवान् महावीर के निर्वाण के एक सौ चौदह वर्ष पश्चात्, सामुच्छेदिकवाद निर्वाण के दो सौ वर्ष पश्चात्, द्वैक्रियवाद निर्वाण के दो सौ अट्ठाईस वर्ष पश्चात्, त्रैराशिकवाद निर्वाण के पाँच सौ चवालीस वर्ष पश्चात् तथा अबद्धिकवाद निर्वाण के छह सौ नौ वर्ष पश्चात् प्रवर्तित हुआ। ___ जमालि, रोहगुप्त तथा गोष्ठामाहिल के अतिरिक्त अन्य सभी निह्नव अपनी-अपनी भूलों का प्रायश्चित्त लेकर पुनः संघ में सम्मिलित हो गये। जमालि, रोहगुप्त तथा गोष्ठामाहिल, जो संघ से अन्त तक पृथक् ही रहे, उनकी कोई परम्परा नहीं चली। न उनका कोई साहित्य ही उपलब्ध है। अल्पारंभी आदि मनुष्यों का उपपात १२३- सेजे इमे गामागर जाव सण्णिवेसेसु मणुया भवंति, तं जहा—अप्पारंभा, अप्पपरिग्गहा, धम्मिया, धम्माणुया, धम्मिट्ठा, धम्मक्खाई, धम्मप्पलोई, धम्मपलज्जणा, धम्मसमुदायारा, धम्मेणं चेव वित्तिं कप्पेमाणा, सुसीला, सुव्वया, सुप्पडियाणंदा साहूहिं एगच्चाओ पाणाइवायाओ पडिविरया जावजीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया एवं जाव (एगच्चाओ मुसावायाओ पडिविरया जावजीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया, एगच्चाओ अदिण्णादाणाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया, एगच्चाओ मेहुणाओ पडिविरया जावजीवाए एगच्चाओ अपडिविरया, एगच्चाओ परिग्गहाओ पडिविरया जावजीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया) एगच्चाओ कोहाओ, माणाओ, मायाओ, लोहाओ, पेजाओ, दोसाओ, कलहाओ, अब्भक्खाणाओ, पेसुण्णओ, परपरिवायाओ, अरइरइओ, मायामोसाओ, मिच्छादसणसल्लाओ पडिविरया जावजीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया, एगच्चाओ आरंभसमारंभाओ पडिविरया जावजीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया, एगच्चाओ करणकारावणाओ पडिविरया जावजीवाए एगच्चाओ अपडिविरया, एगच्चाओ पयणपयावणाओ पडिविरया जावजीवाए, एगच्चाओ पयणपयावणाओ अपडिविरया, एगच्चाओ कोट्टणपट्टिणतजणतालणवहबंधपरिकिलेसाओ पडिविरया जावजीवाए, एगच्चाओ अपडिविरिया, एगच्चाओ पहाणमद्दणवण्णगविलेवणसद्दफरिसरसरूवगंधमल्लालंकाराओ पडिविरया जावजीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया, जेयावण्णे तहप्पगारा सावजजोगोवहिया कम्मंता परपाणपरियावणकरा कजंति, तओ वि एगच्चाओ पडिविरया जावज्जीवाए, एगच्चाओ अपडिविरया। १२३– ग्राम, आकर, सन्निवेश आदि में जो ये मनुष्य होते हैं, जैसे अल्पारंभ —अल्प-थोड़ी हिंसा से जीवन चजाने वाले, अल्पपरिग्रह—सीमित धन, धान्य आदि में सन्तोष रखने वाले, धार्मिक-श्रुत-चारित्ररूप धर्म का आचरण करने वाले, धर्मानुग श्रुतधर्म या आगमानुमोदित धर्म का अनुगमन–अनुसरण करने वाले धार्मिष्ठ— धर्मप्रिय—धर्म में प्रीति रखनेवाले, धर्माख्यायी धर्म का आख्यान करने वाले, भव्य प्राणियों को धर्म बताने वाले
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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