SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५४ औपपातिकसूत्र माने जाते हैं। ____ इस वाद के चलने के पीछे एक घटना है। आचार्य आषाढ श्वेतविका नगरी में थे। वे अपने शिष्यों को योगसाधना सिखा रहे थे। अकस्मात् उनका देहान्त हो गया। अपने आयुष्य-बन्ध के अनुसार वे देव हो गये। उन्होंने यह सोचकर कि उनके शिष्यों का अभ्यास अधूरा न रहे, अपने मृत शरीर में प्रवेश किया। यह सब क्षण भर में घटित हो गया। किसी को कुछ भान नहीं हुआ। शिष्यों का अभ्यास पूरा कराकर वे देवरूप में उस देह से बाहर निकले और उन्होंने श्रमणों को सारी घटना बतलाते हुए उनसे क्षमा-याचना की कि देवरूप में असंयत होते हुए भी उन्होंने संयतात्माओं से वन्दन नमस्कार करवाया। यह कहकर वे अपने अभीष्ट स्थान पर चले गये। यह देखकर श्रमणों को संदेह हुआ कि जगत् में कौन साधु है, कौन देव है, यह अव्यक्त है। उन्होंने इस एक बात को पकड़ लिया, दुराग्रह-ग्रस्त हो गये। उन श्रमणों से यह वाद चला। इस प्रकार अव्यक्तवाद के प्रवर्तक वस्तुतः आचार्य आषाढ के श्रमण-शिष्य थे। ____४. सामुच्छेदिकवाद- नारक आदि भावों का एकान्ततः प्रतिक्षण समुच्छेद–विनाश होता रहता है। सामुच्छेदिकवाद का ऐसा अभिमत है। इसके प्रवर्तक अश्वमित्र माने जाते हैं।' इसके प्रवर्तन के सम्बद्ध कथानक इस प्रकार है कौण्डिल नामक आचार्य थे। उनके शिष्य का नाम अश्वमित्र था। आचार्य शिष्य को 'पूर्वज्ञान' का अभ्यास करा रहे थे। पर्यायवाद का प्रकरण चल रहा था। पर्याय की एक समयवर्तिता प्रसंगोपात्तरूप में समझा रहे थे। प्रथम समय के नारक समुच्छिन्नविच्छिन्न होंगे, दूसरे समय के नारक समुच्छिन्न होंगे। पर्यायात्मक दृष्टि से इसी प्रकार सारे जीव समुच्छिन्न होंगे। अश्वमित्र ने सारे सन्दर्भ को यथार्थरूप में न समझते हुए केवल समुच्छेद या समुच्छिन्नता को ही पकड़ लिया। वह दुराग्रही हो गया। उसने सामुच्छेदिकवाद का प्रवर्तन किया। ५. द्वैक्रियवाद- शीतलता और उष्णता आदि की दोनों अनुभूतियाँ एक ही समय में साथ होती हैं, ऐसी मान्यता द्वैक्रियवाद है। गंगाचार्य इसके प्रवर्तक थे।' - इसके प्रवर्तन से सम्बद्ध कथा इस प्रकार है गङ्ग नामक मुनि धनगुप्त आचार्य के शिष्य थे। वे अपने गुरु को वन्दन करने जा रहे थे। मार्ग में उल्लुका नामक नदी पड़ती थी। मुनि जब उसे पार कर रहे थे, उनके सिर पर सूर्य की उष्ण किरणें पड़ रही थीं, पैरों में पानी की शीतलता का अनुभव हो रहा था। मुनि गङ्ग सोचने लगे—आगमों में तो बतलाया है, एक साथ दो क्रियाओं की अनुभूति नहीं होती, पर मैं प्रत्यक्ष देख रहा हूँ ऐसा होता है। तभी तो एक ही साथ मुझे शीतलता एवं उष्णता का अनुभव हो रहा था। वे इस विचार में आग्रहग्रस्त हो गये। उन्होंने दो क्रियाओं का अनुभव एक साथ होने का सिद्धान्त स्थापित किया। १. नारकादिभावानां प्रतिक्षणं समुच्छेदं क्षयं वदन्तीति सामुच्छेदिकाः, अश्वमित्रमतानुसारिणः । –औपपातिकसूत्र वृत्ति, पत्र १०६ २. द्वे क्रिये—शीतवेदनोष्णवेदनादिस्वरूपे एकत्र समये जीवोऽनुभवतीत्येवं वदन्ति ये, ते वैक्रिया गङ्गाचार्यमतानुवर्तिनः । -औपपातिकसूत्र वृत्ति, पत्र १०६
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy