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________________ भगवान् द्वारा धर्म-देशना १०७ संघाएणं दिव्वेणं संठाणेणं, दिव्वाए इड्डीए, दिव्वाए जुईए, दिव्वाए पभाए, दिव्वाए छायाए, दिव्वाए अच्चीए, दिव्वेणं तेएणं, दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा,) पभासेमाणा, कप्पोवगा, गतिकल्लाणा, आगमेसिभद्दा जाव (चित्तमाणंदिया, पीइमणा, परमसोमणस्सिया, हरिसवसविसप्पमाण-) पडिरूवा। तमाइक्खइ एवं खलु चाहिं ठाणेहिं जीवा णेरइयत्ताए कम्मं पकरेंति, णेरइयत्ताए कम्मं पकरेत्ता णेरइएसु उववजति तं जहा–१ महारंभयाए, २ महापरिग्गहयाए, ३ पंचिंदियवहेणं, ४ कुणिमाहारेणं, एवं एएणं अभिलावेणं। तिरिक्खजोणिएसु–१ माइल्लयाए णियडिल्लयाए, २ अलियवयणेणं, ३ उक्कंचणयाए, ४ वंचणयाए। मणुस्सेसु-१ पगइभद्दयाए, २ पगइविणीययाए, ३ साणुक्कोसयाए, ४ अमच्छरिययाए। देवेसु–१ सरागसंजमेणं, २ संजमासंजमेणं, ३ अकामणिजराए, ४ बालतवोकम्मेणं तमाइक्खड् जह णरगा गम्मतो जे णरगा जा य वेयणा णरए । सारीरमाणुसाइं दुक्खाई तिरिक्खजोणीए ॥ १॥ माणुस्सं च अणिच्चं वाहि-जरा-मरण-वेयणापउरं । देवे य देवलोए देविड्ढि देवसोक्खाइं ॥२॥ णरगं तिरिक्खजोणिं माणुसभावं च देवलोगं च । सिद्धे अ सिद्धवसहिं छज्जीवणियं परिकहेइ ॥३॥ जह जीवा बझंती मुच्चंती जह य संकिलिस्संति । जह दुक्खाणं अंतं करेंति केई अपडिबद्धा ॥ ४॥ अट्टा अट्टियचित्ता जह जीवा दुक्खसागरमुवेंति । जह वेरग्गमुवगया कम्मसमुग्गं विहाडेंति ॥ ५॥ जह रागेण कडाणं कम्माणं पावगो फलविवागो । जह य परिहीणकम्मा सिद्धा सिद्धालयमुवेति ॥ ६॥ ५६– तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर ने भंभसारपुत्र राजा कूणिक, सुभद्रा आदि रानियों तथा महती परिषद् को धर्मोपदेश किया। भगवान् महावीर की धर्मदेशना सुनने को उपस्थित परिषद् में ऋषि द्रष्टा अतिशय ज्ञानी साधु, मुनि मौनी या वाक् संयमी साधु, यति—चारित्र के प्रति अति यत्नशील श्रमण, देवगण तथा सैंकड़ों-सैकड़ों श्रोताओं के समूह उपस्थित थे। ओघ बली–अव्यवच्छिन्न या एक समान रहने वाले बल के धारक, अतिबली अत्यधिक बल सम्पन्न, महाबली-प्रशस्त बलयुक्त, अपरिमित—असीमवीर्य आत्मशक्तिजनित बल, तेज महत्ता तथा कांतियुक्त, शरत् काल के नूतन मेघ के गर्जन, क्रौंच पक्षी के निर्घोष तथा नगाड़े की ध्वनि के समान मधुर गंभीर स्वर युक्त भगवान् महावीर ने हृदय में विस्तृत होती हुई, कंठ में अवस्थित होती हुई तथा मूर्धा में परिव्याप्त होती हुई सुविभक्त अक्षरों
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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