SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दर्शन-वन्दन की तैयारी ९५ ४७- तदनन्तर सेनानायक ने भंभसार के पुत्र राजा कूणिक के प्रधान हाथी को सजा हुआ देखा। (घोड़े, हाथी, रथ, उत्तम योद्धाओं से परिगठित) चतुरंगिणी सेना को सन्नद्ध सुसज्जित देखा। सुभद्रा आदि रानियों के लिए उपस्थापित तैयार कर लाये हुए यान देखे। यह भी देखा, चम्पा नगरी की भीतर और बाहर से सफाई की जा चुकी है, वह सुगंध से महक रही है। यह सब देखकर वह मन में हर्षित, परितुष्ट, आनन्दित एवं प्रसन्न हुआ। भंभसार का पुत्र राजा कूणिक जहाँ था, वह वहाँ आया। आकर हाथ जोड़े, (उन्हें सिर के चारों ओर घुमाया, अंजलि को मस्तक से लगाया) राजा से निवेदन किया देवानुप्रिय! आभिषेक्य हस्तिरत्न तैयार है। हाथी, घोड़े, रथ, उत्तम योद्धाओं से परिगठित चतुरंगिणी सेना सन्नद्ध है। सुभद्रा आदि रानियों के लिए, प्रत्येक के लिए अलग-अलग जुते हुए यात्राभिमुख -गमनोद्यत यान बाहरी सभा-भवन के निकट उपस्थापित हाजिर हैं। चम्पा नगरी की भीतर और बाहर से सफाई करवा दी गई है, पानी का छिड़काव करवा दिया गया है, वह सुगंध से महक रही है। देवानुप्रिय! श्रमण भगवान् महावीर के अभिवन्दन हेतु आप पधारें। , ४८- तए णं से कूणिए राया भंभसारपुत्ते बलवाउयस्स अंतिए एयमढे सोच्चा, णिसम्म हद्वतुट्ठ जाव' हियए, जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अट्टणसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता अणेगवायामजोग्गवग्गण-वामद्दण-मल्लजुद्धकरणेहिं संते, परिस्संते, सयपाग-सहस्सपागेहिं सुगंधतेल्लमाइएहिं पीणणिजेहिं दप्पणिज्जेहिं मयणिज्जेहिं विंहणिज्जेहिं सव्विंदियगायपह्लायणिजेहिं अभिगेहिं अभिगिए समाणे, तेल्लचम्मंसि पडिपुण्णदाणिपायसुउमालकोमलतलेहिं पुरिसेहिं छेएहिं, दक्खेहिं पत्तटेहिं कुसलेहिं मेहावीहिं निउणसिप्पोवगएहिं अभिगणपरिमद्दणुव्वलणकरगुणणिम्माएहिं, अट्ठिसुहाए, मंससुहाए, तयासुहाए, रोमसुहाए चउव्विहाए संबाहणाए संबाहिए समाणे, अवगयखेयपरिस्समे अट्टणसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मजणघरं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता समुत्तजालाउलाभिरामे विचित्तमणिरयणकुट्टिमयले रमणिजे ण्हाणमंडवंसि, णाणामणिरयणभत्तिचित्तंसि पहाणपीठंसि सुहणिसण्णे सुद्धोदएहिं, गंधोदएहिं, पुष्फोदएहिं, सुहोदएहिं पुणो कल्लाणगपवरमजणविहीए मजिए, तत्थ कोउयसएहिं बहुविहेहिं कल्लाणगपवरमजणावसाणे पम्हलसुकुमालगंधकासाइयलूहियंगे, सरससुरहिगोसीसचंदणाणुलित्तगत्ते, अहयसुमहग्घदूसरयणसुसंवुए, सुइमालावण्णगविलेवणे य आविद्धमणिसुवण्णे, कप्पियहारद्धहारतिसरयपालंबपलंबमाणकडिसुत्तसुणयसोभे, पिणद्धगेविजअंगुलिज्जगललियंगयललियकयाभरणे, वरकडगतुडियथंभियभुए, अहियरूवसस्सिरीए, मुद्दियपिंगलंगुलीए कुंडलउज्जोवियाणणे मउडदित्तसिरए, हारोत्थयसुकयरइयवच्छे, पालंबपलंबमाणपडसुकयउत्तरिजे, णाणामणिकणगरयणविमलमहरिहणिउणोवियमिसिमिसंतविरइयसुसिलिट्ठविसिट्ठलट्ठआविद्धवीरवलए किं बहुणा, कप्परुक्खए चेव अलंकियविभूसिए णरवई सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं, चउचामरवालवीइंयगे, मंगलजयसद्दकयालोए, मजणघराओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता अणेगगणनायग-दंडनायग-राईसर-तलवर १. देखें सूत्र संख्या १८
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy