________________
१४
औपपातिकसूत्र देवाणुप्पिया ! चंपं णयरिं सब्भितरवाहिरियं आसित्त जाव' (सम्मजिउवलितं, सिंघाडगतियचउक्कचच्चरचउम्मुह-महापहपहेसु आसित्तसित्तसुइसम्मट्ठरत्यंतरावणवीहियं, मंचाइमंचकलियं, णाणाविहरागउच्छियज्झय-पडागाइपडागमंडियं, लाउल्लोइयमहियं") कारवेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि। ____४५– फिर सेनानायक ने नगरगुप्तिक–नगर की स्वच्छता, सद्व्यवस्था आदि के नियामक, नगररक्षक या कोतवाल को बुलाया। बुलाकर उससे कहा—देवानुप्रिय! चम्पा नगरी के बाहर और भीतर, उसके संघाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, राजमार्ग—इन सबकी सफाई कराओ। वहाँ पानी का छिड़काव कराओ, गोबर आदि का लेप कराओ। (नगरी के रथ्यान्तर—गलियों के मध्य-भागों तथा आपणवीथियों बाजार के रास्तों की भी सफाई कराओ, पानी का छिड़काव कराओ, उन्हें स्वच्छ व सुहावने कराओ। मंचातिमंच सीढ़ियों से समायुक्त प्रेक्षा-गृहों की रचना कराओ। तरह-तरह के रंगों की, ऊँची, सिंह, चक्र आदि चिह्नों से युक्त ध्वजाएँ, पताकाएँ तथा अतिपताकाएँ, जिनके परिपार्श्व अनेकानेक छोटी पताकाओं—झंड़ियों से सजे हों, ऐसी बड़ी पताकाएँ लगवाओ। नगरों की दीवारों को लिपवाओ, पुतवाओ.....) नगरी के वातावरण को उत्कृष्ट सौरभमय करवा दो। यह सब करवाकर मुझे सूचित करो कि आज्ञा का अनुपालन हो गया है।
४६- तए णं से णयरगुत्तिए बालवाउयस्स एयमढे आणाए विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणित्ता चंपं णयरिं सब्भितरबाहिरियं आसित्त जाव' कारवेत्ता, जेणेव बलवाउए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पच्चाप्पिणइ।
४६– नगरपाल ने सेनानायक का आदेश विनयपूर्वक स्वीकार किया। स्वीकार कर चम्पा नगरी की बाहर से, भीतर से सफाई, पानी का छिड़काव आदि करवाकर, वह जहाँ सेनानायक था, वहाँ आया। आकर आज्ञापालन किये जा चुकने की सूचना दी।
४७- तए णं से बलवाउए कोणियस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पियं पासइ, हयगय जाव (रहपवरजोहकलियं च चाउरंगिणिं सेणं) सण्णाहियं पासइ, सुभद्दापमुहाणं देवीणं पडिजाणाइं उवट्ठवियाइं पासइ, चंपं णयरि सब्भितरं जाव गंधवट्टिभूयं कयं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्ठचित्तमाणंदिए, पीअमणे जाव हियए जेणेव कूणिए राया भंभसारपुत्ते, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल जाव (-परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं क१) एवं वयासीकप्पिए णं देवाणुप्पियाणं आभिसक्के हत्थिरयणं, हयगयरहपवरजोहकलिया य चाउरंगिणी सेणा सण्णाहिया, सुभद्दापमुहाणं य देवीणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडिएक्कपाडिएक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताइं जाणाइं उवट्ठावियाइं चंपा णयरी सब्भितरबाहिरिया आसित्त जाव' गंधवट्टिभूया कया, तं णिजंतु णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं अभिवदया।
१-२. देखें सूत्र-संख्या ४०
देखें सूत्र संख्या ४० तथा सूत्र संख्या ४५ ४. देखें सूत्र संख्या १८ ५. देखें यही, सूत्र संख्या ४० तथा सूत्र संख्या ४५