SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दर्शन - वन्दन की तैयारी ९३ ४३ – तए णं से बलवाउए जाणसालियं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी खप्पामेव भो देवाप्पिया ! सुभद्दापमुहाणं देवीणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडिएक्कपाडिएक्काई जत्ताभिमुहाई जुत्ताइं जाणाई उवट्ठवेह, उवट्ठवेत्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि । ४३ – तदनन्तर सेनानायक ने यानशालिक – यानशाला के अधिकारी को बुलाया। बुलाकर उससे कहासुभद्रा आदि रानियों के लिए, उनमें से प्रत्येक के लिए (अलग-अलग) यात्राभिमुख गमनोद्यत, जुते हुए यान बाहरी सभा भवन के निकट उपस्थित करो — जुतवाकर, तैयार कर हाजिर करो । हाजिर कर आज्ञा-पालन किये जा चुकने की सूचना दो। ४४— तए णं से जाणसालिए बलवाउयस्स एयमट्टं आणाए विणएणं वयणं पडिसुणेइ, पडणेत्ता जेणेव जाणसाला तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता जाणाई पच्चुवेक्खेड़, पच्चुवेक्खेत्ता जाणाई संपमज्जेइ, संपमज्जेत्ता जाणाई संवट्टेइ, संवट्टेत्ता जाणाई णीणेइ, णीणेत्ता जाणाणं दूसे पवीणेइ, पवीणेत्ता जाणाई समलंकरेइ, समलंकरेत्ता जाणाई वरभंडगमंडियाई करेइ, करेत्ता जेणेव वाहणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वाहणसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता वाहणाई पच्चुवेक्खेइ, पच्चुंवेक्खेत्ता वाहणाई संपमज्जइ, संपमज्जित्ता वाहणाइं णीणेइ, णीणेत्ता वाहणाई अप्फालेइ, अप्फालेत्ता दूसे पवीणे, पवीणेत्ता वाहणई समलंकरेइ, समलंकरेत्ता वाहणाई वरभंडगमंडियाइं करेइ, करेत्ता वाहणारं जाणाई जोएड़, जोएत्ता पओयलट्ठि पओयधरए य समं आडहइ, आडहित्ता वट्टमग्गं गाहेइ, गाहेत्ता जेणेव बलवाउए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बलवाउयस्स एयमाणत्तियं पच्चष्पिणइ । ४४— यानशालिक ने सेनानायक का आदेश-वचन विनयपूर्वक स्वीकार किया। स्वीकार कर वह, जहाँ यानशाला थी, वहाँ आया । आकर यानों का निरीक्षण किया। निरीक्षण कर उनका प्रमार्जन किया— अच्छी तरह सफाई की। सफाई कर उन्हें वहाँ से हटाया । वहाँ से हटाकर बाहर निकाला। बाहर निकाल कर उनके दूष्य— आच्छादक वस्त्र—–उन पर लगी खोलियाँ दूर कीं। खोलियाँ हटाकर यानों को सजाया । सजाकर उन्हें उत्तम आभरणों से विभूषित किया। विभूषित कर वह जहाँ वाहनशाला थी, आया। आकर वाहनशाला में प्रविष्ट हुआ । प्रविष्ट होकर वाहनों (बैल आदि ) का निरीक्षण किया। निरीक्षण कर उन्हें संप्रमार्जित किया—उन पर लगी हुई धूल आदि को दूर किया, वैसा कर उन्हें वाहनशाला से बाहर निकाला। बाहर निकाल कर उनकी पीठ थपथपाई। वैसा कर उन पर लगे आच्छादक वस्त्र — झूल आदि हटाये । आच्छादक वस्त्र हटाकर वाहनों को सजाया । सजाकर उन्हें उत्तम आभरणों से विभूषित किया । विभूषित कर उन्हें यानों में गाड़ियों, रथों आदि में जोता। जोतकर प्रतोत्रयष्टिकाएं गाड़ी, रथ आदि हाँकने की लकड़ियाँ या चाबुक तथा प्रतोत्रधर — गाड़ी हाँकने वालों— गाड़ीवानों को प्रस्थापित किया— उन्हें यष्टिकाएँ देकर यान चालन का कार्य सौंपा। वैसा कर यानों को राजमार्ग पकड़वाया — गाड़ीवान उसकी आज्ञानुसार यानों को राजमार्ग पर लाये। वैसा करवाकर वह, जहाँ सेनानायक था, वहाँ आया। आकर सेनानायक को आज्ञा-पालन किये जा चुकने की सूचना दी T ४५ — तए णं से बलवाउए णयरगुत्तियं आमंतेइ, आमंतेत्ता एवं वयासी—खप्पामेव भो
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy