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________________ ७ जन-समुदाय द्वारा भगवान् का वन्दन तथा सोने के कड़ले आदि बहुत प्रकार के गहने सुशोभित थे। वे पंचरंगे, बहुमूल्य, नासिका से निकलते निःश्वास मात्र से जो उड़ जाएं ऐसे अत्यन्त हल्के, मनोहर, सुकोमल, स्वर्णमय तारों से मंडित किनारों वाले, स्फटिक-तुल्य आभायुक्त वस्त्र धारण किये हुए थीं। उन्होंने बर्फ, गोदुग्ध, मोतियों के हार एवं जल-कण सदृश स्वच्छ, उज्ज्वल, सुकुमार मुलायम, रमणीय, सुन्दर बुने हुए रेशमी दुपट्टे ओढ़ रखे थे। वे सब ऋतुओं में खिलनेवाले सुरभित पुष्पों की उत्तम मालाएँ धारण किये हुए थीं। चन्दन, केसर आदि सुगन्धमय पदार्थों से निर्मित देहरञ्जन —अंगराग से उनके शरीर रञ्जित एवं सुवासित थे, श्रेष्ठ धूप द्वारा धूपित थे। उनके मुख चन्द्र जैसी कान्ति लिये हुए थे। उनकी दीप्ति बिजली की द्युति और सूरज के तेज सदृश थी। उनकी गति, हँसी, बोली, नयनों के हावभाव, पारस्परिक आलाप-संलाप इत्यादि सभी कार्य-कलाप नैपुण्य और लालित्ययुक्त थे। वे सुन्दर स्तन, जघन—कमर से नीचे का भाग, मुख, हाथ, पैर, नयन, लावण्य, रूप, यौवन और नेत्रचेष्टाओं भ्रूभंगिमाओं से युक्त थीं। उनका संस्पर्श शिरीष पुष्प और नवनीत—मक्खन जैसा मृदुल तथा कोमल था। वे निष्कलुष, निर्मल, सौम्य, कमनीय, प्रियदर्शन देखने में प्रिय या सुभग तथा सुरूप थीं। वे भगवान् के दर्शन की उत्कण्ठा से हर्षित-रोमांचित थीं। उनमें वे सब विशेषताएँ थीं, जो देवताओं में होती हैं। जन-समुदाय द्वारा भगवान् का वन्दन ३८- तए णं चंपाए णयरीए सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मह-महापह-पहेसु महया जणसद्दे इ वा, बहुजणसद्दे इ वा, जणवाए इ वा, जणुल्लावे इ वा, जणवहे इ वा, जणबोले इ वा, जणकलकले इ वा, जणुंम्मी इ वा, जणुक्कलिया इ वा, जणसण्णिवाए इ वा, बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ एवं खलु देवाणुप्पिया! समणे भगवं महावीरे आइगरे, तित्थगरे, सयंसंबुद्धे, पुरिसुत्तमे जाव' संपाविउकामे पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे, गामाणुग्गामं दूइजमाणे इहमागए, इहसंपत्ते, इह समोसढे, इहेव चंपाए णयरीए बाहिं पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। तं महप्फलं खलु भो देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण-णमंसणपडिपुच्छण-पज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया! समणं भगवं महावीरं वंदामो, णमंसामो, सक्कारेमो सम्माणेमो, कल्लाणं, मंगलं, देवयं, चेइयं [विणएणं] पज्जुवासामो, एयं णं पेच्चभवे इहभवे य हियाए, सुहाए, खमाए, निस्सेयसाए, आणुगामियत्ताए भविस्सइत्ति कटु बहवे उग्गा, उग्गपुत्ता, भोगा, भोगपुत्ता एवं दुपडोयारेणं राइण्णा, (इक्खागा, नाया, कोरव्वा) खत्तिया, माहणा, भडा, जोहा, पसत्थारो, मल्लई, लेच्छई, लेच्छईपुत्ता, अण्णे य बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडंबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभितयो अप्पेगइया वंदणवत्तियं, अप्पेगइया पूयणवत्तियं, एवं सक्कारवत्तियं, सम्माणवत्तियं, सणवत्तियं, कोऊहलवत्तियं, अप्पेगइया अट्ठविणिच्छयहेउं अस्सुयाई १. सूत्र संख्या २० में आये हुए भगवान् महावीर के सभी विशेषण प्रथमाविभक्ति एकवचनान्त कर यहां लगाएं।
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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