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________________ औपपातिकसूत्र विवेचन- भगवान् महावीर के दर्शन, वन्दन हेतु देवों के साथ-साथ अप्सराओं या देवियों के आगमन का भी अन्यत्र वर्णन प्राप्त होता है। टीकाकार आचार्य अभयदेवसूरि ने टीका में संक्षेप में उसे उद्धृत किया है। वह संक्षिप्त पाठ और उसका सारांश इस प्रकार है तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अच्छरगणसंघाया अंतिअं पाउब्भवित्था। ताओ णं अच्छराओ धंतधोयकणगरुअगसरिसप्पभाओ समइक्कंता य बालभावं अणइवरसोम्मचारुरूवा निरुवहयसरसजोव्वणकक्कसतरुणवयभावमुवगयाओ निच्चमवट्ठियसहावा सव्वंगसुंदरीओ इच्छियनेवत्थरइयरमणिजगहियवेसा, किं ते ? हारद्धहारपाउत्तरयणकुंडलवासुत्तगहेमजाल-मणिजाल - कणगजालसुभगउरितियकडगखुड्डुगएगावलिकंठसुत्तमगहगधरच्छगेवेजसोणियसुत्तगतिलगफुल्लगसिद्धत्थियकण्णवालियससिसूर उसभचक्कयतलभंगयतुडियहत्थमालयहरिसकेऊरवलयपालंबपलंबअंगुलिज-गवलक्खदीणारमालिया चंदसूरमालियाकंचिमेहलकलावपयरगपरिहेरगपायजाल घंटियाखिंखिणिरयणो-रुजालखुड्डियवरनेउरचलणमालिया कणगणिगलजालगमगरमुहविरायमाणनेऊरपचलियसद्दालभूसणधरीओ, दसद्धवण्णरागरइयरत्तमणहरा हयलालापेलवाइरेगे धवले कणगखचियंतकम्मे आगासफालियसरिसप्पहे अंसुए नियत्थाओ, आयरेणं तुसारगोक्खीरहारदगरयपंडुरदुगुल्लसुकुमालसुकयरमणिज उत्तरिजाइं, पाउयाओ,.... सव्वाउयसुरभिकुसुमसुरइयविचित्तवरमल्लधारिणीओ सुगंधिचुण्णंगरागवरवासपुष्फपूरग-विराइया उत्तमवरधूवधूविया सिरिसमाणवेसा दिव्वकुसुममल्लदामपब्भंजलिपुडाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमनिलाडा..विजुघणमिरीइसूरदिप्पंततेअअहियतरसंनिकासाओ, सिंगारागारचारुवेसाओ, संगयगयहसियभणियचेट्ठियविलास सललियसंलावनिउणजुत्तोवयारकुसलाओ, सुंदरथणजहणवयणकरचरणनयणलावण्णरूवजोव्वणविलासकलियाओ सुरबहूओ सिरीसनवणीयमउयसुकुमालतुल्ल-फासाओ, ववगयकलिकलुसधोयनिद्धंतरयमलाओ, सोमाओ कंताओ पियदंसणाओ जिणभत्तिदंसणाणुरागेणं हरिसियाओ ओवइया यावि"जिणसगासं"। उस समय भगवान् महावीर के समीप अनेक समूहों में अप्सराएँ देवियाँ उपस्थित हुईं। उनकी दैहिक क्रान्ति अग्नि में तपाये गये, जल से स्वच्छ किये गये स्वर्ण जैसी थी। वे बाल-भाव को अतिक्रान्त कर बचपन को लांघकर यौवन में पदार्पण कर चुकी थीं नवयौवना थीं। उनका रूप अनुपम, सुन्दर एवं सौम्य था। उनके स्तन, नितम्ब, मुख, हाथ, पैर तथा नेत्र लावण्य एवं यौवन से विलसित, उल्लसित थे। दूसरे शब्दों में उनके अंग-अंग में सौन्दर्य-छटा लहराती थी। वे निरुपहत-रोग आदि से अबाधित, सरस-शृंगाररस-सिक्त तारुण्य से विभूषित थीं। उनका वह रूप, सौन्दर्य, यौवन सुस्थित था, जर वृद्धावस्था से विमुक्त था। __ वे देवियाँ सुरम्य वेशभूषा, वस्त्र, आभरण आदि से सुसज्जित थीं। उनके ललाट पर पुष्प जैसी आकृति में निर्मित आभूषण, उनके गले में सरसों जैसे स्वर्ण-कणों तथा मणियों से बनी कंठियाँ, कण्ठसूत्र, कंठले, अठारह लड़ियों के हार, नौ लड़ियों के अर्द्धहार, बहुविध मणियों से बनी मालाएँ, चन्द्र, सूर्य आदि अनेक प्रकार की मोहरों की मालाएँ, कानों में रत्नों के कुण्डल, बालियाँ, बाहुओं में त्रुटिक तोड़े, बाजुबन्द, कलाइयों में मानिक-जड़े कंकण, अंगुलियों में अंगूठियाँ, कमर में सोने की करधनियाँ, पैरों में सुन्दर नूपूर—पैजनियाँ, घुघुरूयुक्त पायजेबें
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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