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वैमानिक देवों का आगमन
णामंकपागडियचिंधमउडा महिड्डिया-जाव' पज्जुवासंति।
३६- उस काल, उस समय श्रमण भगवान् महावीर के सान्निध्य में बृहस्पति, चन्द्र, सूर्य, शुक्र, शनैश्चर, राह, धूमकेत, बध तथा मंगल, जिनका वर्ण तपे हए स्वर्ण-बिन्द के समान दीप्तिमान था—(ये) ज्योतिष्क देव प्रकट हुए। इनके अतिरिक्त ज्योतिश्चक्र में परिभ्रमण करने वाले–गति विशिष्ट केतु-जलकेतु आदि ग्रह, अट्ठाईस प्रकार के नक्षत्र देवगण, नाना आकृतियों के पाँच वर्ण के तारे-तारा जाति के देव प्रकट हुए। उनमें स्थित-गतिविहीन रहकर प्रकाश करने वाले तथा अविश्रान्ततया बिना रुके अनवरत गतिशील दोनों प्रकार के ज्योतिष्क देव थे। हर किसी ने अपने-अपने नाम से अंकित अपना विशेष चिह्न अपने मुकुट पर धारण कर रखा था। वे परम ऋद्धिशाली देव भगवान् की पर्युपसाना करने लगे। वैमानिक देवों का आगमन
३७- तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स वेमाणिया देवा अंतियं पाउब्भवित्था-सोहम्मीसाण-सणंकुमार-माहिंद-बंभ-लंतग-महासुक्क-सहस्साराणय-पाणयारण-अच्चुवई पहिट्ठा देवा जिणदंसणुस्सुया गमणजणियाहासा, पालग-पुष्फग-सोमणस्स-सिरिवच्छ-णंदियावत्त-कामगमप्रीइगम-मणोगम-विमल-सव्वओभद्द-सरिसणामधेजेहिं विमाणेहिं ओइण्णा वंदगा जिणिंदं मिग-महिसवराह-छगल-हदुर-हय-गय-वइभुयग-खग्ग-उसभंकविडिमपागडियचिंधमउडा पसिढिलवरमउडतिरीडधारी, कुंडलउज्जोवियाणणा, मउडदित्तसिरया, रत्ताभा, पउमपम्हगोरा, सेया, सुभवण्णगंधफासा, उत्तमवेउव्विणो, विविहवत्थगंधमल्लधारी, महिड्डिया महज्जुतिया जाव' पंजलिउडा पजुवासंति।
३७– उस काल, उस समय श्रमण भगवान् महावीर के समक्ष सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण तथा अच्युत देवलोकों के अधिपति—इन्द्र अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक प्रादुर्भूत हुए। जिनेश्वरदेव के दर्शन पाने की उत्सुकता और तदर्थ अपने वहाँ पहुँचने से उत्पन्न हर्ष से वे उल्लसित
थे।
जिनेन्द्र प्रभु का वन्दन-स्तवन करने वाले वे (बारह देवलोकों के दस अधिपति) देव पालक, पुष्पक, सौमनस, श्रीवत्स, नन्द्यावर्त, कामगम, प्रीतिगम, मनोगम, विमल तथा सर्वतोभद्र नामक अपने-अपने विमानों से भूमि पर उतरे। वे मृग हरिण, महिष–भैंसा, वराह-सुअर, छगल—बकरा, दुर्दुर-मेंढ़क, हय–घोड़ा, गजपतिउत्तम हाथी, भुजग सर्प, खड्ग—गैंडा तथा वृषभ –सांड के चिह्नों से अंकित मुकुट धारण किये हुए थे। वे श्रेष्ठ मुकुट ढीले सुहाते उनके सुन्दर सविन्यास युक्त मस्तकों पर विद्यमान थे। कुंडलों की उज्ज्वल दीप्ति से उनके मुख उद्योतित थे। मुकुटों से उनके मस्तक दीप्त-दीप्तिमान् थे। वे लाल आभा लिए हुए, पद्मगर्भ सदृश गौर कान्तिमय, श्वेत वर्णयुक्त थे। शुभ वर्ण, स्पर्श आदि के निष्पादन में उत्तम वैक्रियलब्धि के धारक थे। वे तरह-तरह के वस्त्र, सुगन्धित द्रव्य तथा मालाएं धारण किये हुए थे। वे परम ऋद्धिशाली एवं परम द्युतिमान् थे। वे हाथ जोड़ कर भगवान् की पर्युपासना करने लगे।
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