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________________ ७२ औपपातिकसूत्र अर्थात् देह तथा अपने अधिकारवर्ती भौतिक पदार्थों से ममता हटा लेना। ३. अव्यथा— देव, पिशाच द्वारा कृत उपसर्ग से व्यथित, विचलित नहीं होना, पीड़ा तथा कष्ट आने पर आत्मस्थता नहीं खोना। ४. असंमोह—देव आदि द्वारा रचित मायाजाल में तथा सूक्ष्म भौतिक विषयों में संमूढ या विभ्रान्त नहीं होना। विवेचन— ध्यानरत पुरुष स्थूल रूप में तो भौतिक विषयों का त्याग किये हुए होता ही है, ध्यान के समय जब कभी इन्द्रिय-भोग संबंधी उत्तेजक भाव उठने लगते हैं तो उनसे भी वह विभ्रान्त एवं विचलित नहीं होता। शुक्लध्यान के चार आलम्बन कहे गये हैं। वे इस प्रकार हैं१. शान्ति क्षमाशीलता, सहनशीलता। २. मुक्ति- लोभ आदि के बन्धन से उन्मुक्तता। ३. आर्जव- ऋजुता सरलता, निष्कपटता। ४. मार्दव- मृदुता—कोमलता, निरभिमानिता। शुक्लध्यान की चार अनुप्रेक्षाएँ (भावनाएं) बतलाई गई हैं। वे इस प्रकार हैं १.अपायानुप्रेक्षा— आत्मा द्वारा आचरित कर्मों के कारण उत्पद्यमान अपाय—अवाञ्छित, दुःखद स्थितियों - अनर्थों के सम्बन्ध में पुनः पुनः चिन्तन। २. अशुभानुप्रेक्षा— संसार के अशुभ-पाप-पंकिल, आध्यात्मिक दृष्टि से अप्रशस्त स्वरूप का बार-बार चिन्तन। __३. अनन्तवृत्तितानुप्रेक्षा— भवभ्रमण या संसारचक्र की अनन्तवृत्तिता अन्त काल तक चलते रहने की वृत्ति स्वभाव पर पुनः पुनः चिन्तन। ४. विपरिणामानुप्रेक्षा— क्षण-क्षण विपरिणत होती विविध परिणामों में से गुजरती, परिवर्तित होती वस्तुस्थिति पर—वस्तु-जगत् की विपरिणामधर्मिता पर बार-बार चिन्तन । यह ध्यान का विवेचन है। व्युत्सर्ग व्युत्सर्ग क्या है—उसके कितने भेद हैं ? व्युत्सर्ग के दो भेद बतलाये गये हैं१. द्रव्य-व्युत्सर्ग, २. भाव-व्युत्सर्ग। द्रव्य-व्युत्सर्ग क्या है—उसके कितने भेद हैं ? द्रव्य-व्युत्सर्ग के चार भेद हैं । वे इस प्रकार हैं१. शरीर-व्युत्सर्ग— देह तथा दैहिक सम्बन्धों की ममता या आसक्ति का त्याग। २. गण-व्युत्सर्ग— गण एवं गण के ममत्व का त्याग। ३. उपधि-व्युत्सर्ग— उपधि का त्याग करना एवं साधन-सामग्रीगत ममता का, साधन-सामग्री को मोहक तथा आकर्षक बनाने हेतु प्रयुक्त होने वाले साधनों का त्याग। ४. भक्त-पान-व्युत्सर्ग- आहार-पानी का, तद्गत आसक्ति या लोलुपता आदि का त्याग।
SR No.003452
Book TitleAgam 12 Upang 01 Auppatik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1992
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_aupapatik
File Size17 MB
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