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व्युत्सर्ग
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भाव-व्युत्सर्ग क्या है उसके कितने भेद हैं ? भाव-व्युत्सर्ग के तीन भेद कहे गये हैं—१. कषाय-व्युत्सर्ग, २. संसार-व्युत्सर्ग, ३. कर्म-व्युत्सर्ग। कषाय-व्युत्सर्ग क्या है उसके कितने भेद हैं ? कषाय-व्युत्सर्ग के चार भेद बतलाये गये हैं, जो इस प्रकार हैं१. क्रोध-कषाय-व्युत्सर्ग- क्रोध का त्याग। . २. मान-व्युत्सर्ग- अहंकार का त्याग। ३. माया-व्युत्सर्ग- छल-कपट का त्याग। ४. लोभ-व्युत्सर्ग- लालच का त्याग। यह कषाय-व्युत्सर्ग का विवेचन है। संसार-व्युत्सर्ग क्या है वह कितने प्रकार का है ? संसार-व्युत्सर्ग चार प्रकार का बतलाया गया है। वह इस प्रकार है१. नैरयिक-संसारव्युत्सर्ग-नरक-गति बँधने के कारणों का त्याग। २. तिर्यक्-संसारव्युत्सर्ग-तिर्यञ्च-गति बँधने के कारणों का त्याग। ३. मनुज-संसारव्युत्सर्ग- मनुष्य-गति बँधने के कारणों का त्याग। ४. देव-संसारव्युत्सर्गदेव-गति बँधने के कारणों का त्याग। यह संसार-व्युत्सर्ग का वर्णन है। कर्म-व्युत्सर्ग क्या है वह कितने प्रकार का है? कर्म-व्युत्सर्ग आठ प्रकार का बतलाया गया है। वह इस प्रकार है
१. ज्ञानावरणीय-कर्म-व्युत्सर्ग- आत्मा के ज्ञान गुण के आवरक कर्म-पुद्गलों के बंधने के कारणों का त्याग।
२. दर्शनावरणीय-कर्म-व्युत्सर्ग- आत्मा के दर्शन सामान्य ज्ञान गुण के आवरक कर्मपुद्गलों के बंधने के कारणों का त्याग।
३. वेदनीय-कर्म-व्युत्सर्ग- साता-असाता सुख-दुःख रूप वेदना के हेतुभूत कर्म-पुद्गलों के बंधने के कारणों का त्याग, सुख-दुःखात्मक अनुकूल-प्रतिकूल वेदनीयता में आत्मा को तद्-अभिन्न मानने का उत्सर्जन।
४. मोहनीय-कर्म-व्युत्सर्ग- आत्मा के स्वप्रतीति-स्वानुभूति-स्वभावरमणरूप गुण के आवरक कर्मपुद्गलों के बंधने के कारणों का त्याग।
५. आयुष्य-कर्म-व्युत्सर्ग- किसी भव में पर्याय में रोक रखने वाले आयुष्य कर्म के पुद्गलों के बंधने के कारणों का त्याग।
६. नाम-कर्म-व्युत्सर्ग- आत्मा के अमूर्तत्व गुण के आवरक कर्म-पुद्गलों के बंधने के कारणों का त्याग।
७. गोत्र-कर्म-व्युत्सर्ग- आत्मा के अगुरुलघुत्व (न भारीपन-न-हलकापन) रूप गुण के आवरक कर्मपुद्गलों के बँधने के कारणों का त्याग।
८. अन्तराय-कर्म-व्युत्सर्ग- आत्मा के शक्ति-रूप गुण के आवरक, अवरोधक कर्म-पुद्गलों के बंधने के कारणों का त्याग।