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________________ १०] [ प्रश्नव्याकरणसूत्र शु. १, अ. १ (३) श्रवीसंभ (प्रविश्रम्भ ) - प्रविश्वास, हिंसाकारक पर किसी को विश्वास नहीं होता वह विश्वासजनक है, अतः अविश्रम्भ है । (४) हिंसविहिंसा (हिंस्यविहिंसा) - जिसकी हिंसा की जाती है उसके प्राणों का हनन । (५) किच्चं ( प्रकृत्यम्) - सत्पुरुषों द्वारा करने योग्य कार्य न होने के कारण हिंसा अकृत्यकुकृत्य है । (६) घायणा ( घातना) - प्राणों का घात करना । (७) मारणा ( मारण ) – हिंसा मरण को उत्पन्न करने वाली होने से मारणा है । (८) वहणा ( वधना ) – हनन करना, वध करना । (९) उद्दवणा (उपद्रवणा ) - अन्य को पीड़ा पहुँचाने के कारण यह उपद्रवरूप है । (१०) तिवायणा ( त्रिपातना) मन, वाणी एवं काय अथवा देह, आयु और इन्द्रिय- इन तीन का पतन कराने के कारण यह त्रिपातना है । इसके स्थान पर 'निवायणा' पाठ भी है, किन्तु अर्थ वही है । (११) प्रारंभ समारंभ ( आरम्भ समारम्भ ) - जीवों को कष्ट पहुँचाने से या कष्ट पहुँचा हुए उन्हें मारने से हिंसा को प्रारम्भ समारम्भ कहा है । जहाँ प्रारम्भ - समारम्भ है, वहाँ हिंसा अनिवार्य है । (१२) प्राउयक्कम्मस्स उवद्दवो - भेयणिट्टवणगालणा य संवट्टगसंखेवो (आयुः कर्मणः उपद्रवः - भेदनिष्ठापनगालना - संवर्त्तकसंक्षेप : ) – आयुष्य कर्म का उपद्रवण करना, भेदन करना प्रथवा श्रायु को संक्षिप्त करना - दीर्घकाल तक भोगने योग्य आयु को अल्प समय में भोगने योग्य बना देना । (१३) मच्चू (मृत्यु) - मृत्यु का कारण होने से अथवा मृत्यु रूप होने से हिंसा मृत्यु है । (१४) संजमो (असंयम ) - जब तक प्राणी संयमभाव में रहता है, तब तक हिंसा नहीं होती । संयम की सीमा से बाहर - असंयम की स्थिति में ही हिंसा होती है, अतएव वह असंयम है । (१५) कडगमद्दण ( कटकमर्दन ) - सेना द्वारा आक्रमण करके प्राणवध करना अथवा सेना का वध करना । (१६) वोरमण ( व्युपरमण ) - प्राणों से जीव को जुदा करना । (१७) परभवसंकामकारम्रो ( परभवसंक्रमकारक ) - वर्तमान भव से विलग करके परभव में पहुंचा देने के कारण यह परभवसंक्रमकारक है । (१८) दुग्गतिप्पवा ( दुर्गतिप्रपात ) - नरकादि दुर्गति में गिराने वाली । (१९) पावकोव ( पापकोप) (२०) पावलोभ (पापलोभ ) - (२१) छविच्छे विच्छेद है । ) - पाप को कुपित - उत्तेजित करने वाली -भड़काने वाली । - पाप के प्रति लुब्ध करने वाली - प्रेरित करने वाली 1 (छविच्छेद ) – हिंसा द्वारा विद्यमान शरीर का छेदन होने से यह
SR No.003450
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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