________________
प्राणवध के नामान्तर]
(१८) निष्पिपास–हिंसक के चित्त में हिस्य के जीवन की पिपासा-इच्छा नहीं होती, अतः वह निष्पिपास कहलाती है।
(१९) निष्करुण-हिंसक के मन में करुणाभाव नहीं रहता-वह निर्दय हो जाता है, अतएव निष्करुण है।
(२०) नरकवासगमन-निधन-हिंसा नरकगति की प्राप्ति रूप परिणाम वाली है।
(२१) मोहमहाभयप्रवर्तक–हिंसा मूढता एवं परिणाम में घोर भय को उत्पन्न करने वाली प्रसिद्ध है।
(२२) मरणवैमनस्य-मरण के कारण जीवों में उससे विमनस्कता उत्पन्न होती है ।
उल्लिखित विशेषणों के द्वारा सूत्रकार ने हिंसा के वास्तविक स्वरूप को प्रदर्शित करके उसकी हेयता प्रकट की है। प्राणवध के नामान्तर
३-तस्स य णामाणि इमाणि गोण्णाणि होति तीसं, तं जया-१ पाणवहं २ उम्मूलणा सरीरायो २ अवीसंभो ४ हिंसविहिंसा तहा ५ अकिच्चं च ६ घायणा य ७ मारणा य ८ वहणा ९ उद्दवणा १० तिवायणा' य ११ प्रारंभसमारंभो १२ पाउयक्कम्मस्सुवद्दवो भेयणिट्ठवणगालणा य संवद्रगसंखेवो १३ मच्च १४ असंजमो १५ कडगमणं ११ वोरमणं १७ परभवसंकामकारो १ इप्पवानो १९ पावकोवो य २० पावलोभो २१ छविच्छेनो २२ जीवियंतकरणो २३ भयंकरो २४ प्रणकरो २५ वज्जो २६ परियावणण्हो २७ विणासो २८ णिज्जवणा २९ लुपणा ३० गुणाणं विराहणत्ति विय तस्स एवमाईणि णामधिज्जाणि होति तीसं, पाणवहस्स कलुसस्स कडुयफलदेसगाई ॥२॥
३–प्राणवधरूप हिंसा के विविध आयामों के प्रतिपादक गुणवाचक तीस नाम हैं । यथा(१) प्राणवध (२) शरीर से (प्राणों का) उन्मूलन (३) अविश्वास (४) हिंस्य विहिंसा (५) अकृत्य (६) घात (ना) (७) मारण (८) वधना (९) उपद्रव (१०) अतिपातना (११) प्रारम्भसमारंभ (१२) आयुकर्म का उपद्रव-भेद-निष्ठापन–गालना-संवर्तक और संक्षेप (१३) मृत्यु (१४) असंयम (१५) कटक (सैन्य) मर्दन (१६) व्युपरमण (१७) परभवसंक्रामणकारक (१८) दुर्गतिप्रपात (१९) पापकोप (२०) पापलोभ (२१) छविच्छेद (२२) जीवित-अंतकरण (२३) भयंकर (२४) ऋणकर (२५) वज्र (२६) परितापन आस्रव (२७) विनाश (२८) निर्यापना (२९) लुपना (३०) गुणों की विराधना। इत्यादि प्राणबध के कलुष फल के निर्देशक ये तीस नाम हैं।
१-पाणवह (प्राणवध)-- जिस जीव को जितने प्राण प्राप्त हैं, उनका हनन करना।
२-उम्मूलणा सरीराओ (उन्मूलना शरीरात्)-जीव को शरीर से पृथक् कर देना-प्राणी के प्राणों का उन्मूलन करना । १. पाठान्तर-णिवायणा ।