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पंचम अध्ययन : परिमाहत्याग
सूत्रक्रम के अनुसार ब्रह्मचर्यसंवर के पश्चात् अपरिग्रहसंवर का प्रतिपादन क्रमप्राप्त है अथवा इससे पूर्व मैथुनविरमण का कथन किया गया है, वह सर्वथा परिग्रह का त्याग करने पर ही संभव है, अतएव अब परिग्रहविरमणरूप संवर का निरूपण किया जा रहा है। उसका प्रथम सूत्र इस प्रकार हैउत्क्षेप
१५४–जंबू ! अपरिग्गहसंवुडे य समणे प्रारंभ-परिग्गहाम्रो विरए, विरए कोह-माण-मायालोहा। एगे असंजमे। दो चेव रागदोसा। तिण्णि य दंडा, गारवा य, गुत्तीयो तिण्णि, तिण्णि य विराहणाम्रो । चत्तारि कसाया झाण-सण्णा-विकहा तहा य हुंति चउरो। पंच य किरियाप्रो समिइ-इंदिय-महव्वयाइं च । छज्जीवणिकाया, छच्च लेसानो । सत्त भया। अट्रय मया। णव चेव य बंभचेर-वयगुत्ती। दसप्पगारे य समणधम्मे । एग्गारस य उवासगाणं । बारस य भिक्खुपडिमा। तेरस किरियाठाणा य। चउद्दस भूयगामा। पण्णरस परमाहम्मिया। गाहा सोलसया। सत्तरस असंजमे। अट्टारस प्रबंभे । एगुणवीसइ णायज्झयणा। वीसं असमाहिट्ठाणा। एगवीसा य सबला य।