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________________ २३०] [प्रश्नव्याकरणसूत्र : श्रु. २, अ.४ १५३-इस प्रकार ब्रह्मचर्य यह संवरद्वार सम्यक् प्रकार से संवृत और सुरक्षित-पालित होता है । मन, वचन, और काय, इन तीनों योगों से परिरक्षित इन (पूर्वोक्त) पाँच भावनारूप कारणों से सदैव, आजीवन यह योग धैर्यवान् और मतिमान् मुनि को पालन करना चाहिए। यह संवरद्वार प्रास्रव से रहित है, मलीनता से रहित है और भावछिद्रों से रहित है । इससे कर्मों का प्रास्रव नहीं होता। यह संक्लेश से रहित है, शुद्ध है और सभी तीर्थंकरों द्वारा अनुज्ञात है। इस प्रकार यह चौथा संवरद्वार स्पृष्ट-विधिपूर्वक अंगीकृत, पालित, शोधित-अतिचारत्याग से निर्दोष किया गया, पार–किनारे तक पहुँचाया हुआ, कीर्तित-दूसरों को उपदिष्ट किया गया, आराधित और तीर्थंकर भगवान् की आज्ञा के अनुसार अनुपालित होता है, ऐसा ज्ञातमुनि भगवान् (महावीर) ने कहा है, युक्तिपूर्वक समझाया है। यह प्रसिद्ध-जगविख्यात है, प्रमाणों से सिद्ध है । यह भवस्थित सिद्धों-अर्हन्त भगवानों का शासन है । सुर, नर आदि की परिषद् में उपदिष्ट किया गया है और मंगलकारी है। चतुर्थ संवरद्वार समाप्त हुआ। जैसा मैंने भगवान् से सुना, वैसा ही कहता हूँ।
SR No.003450
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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