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________________ अहिंसा के विशुद्ध दृष्टा और आराधक ] [ १६९ अर्थात् जिस मार्ग पर महाजन - विशिष्ट पुरुष चले हैं, वही हमारे लिए लक्ष्य तक पहुँचने सही मार्ग है । अहिंसा के पथ पर त्रिलोकपूजित, सर्वज्ञ - सर्वदर्शी, प्राणीमात्र के प्रति वत्सल तीर्थंकर देव चले और अन्य अतिशयज्ञानी महामानव चले, वह अहिंसा का मार्ग निस्संदेह गन्तव्य है, वही लक्ष्य तक पहुँचाने वाला है और उसके विषय में किसी प्रकार की शंका रखना योग्य नहीं है । इस मूल पाठ से साधक को इस प्रकार का आश्वासन मिलता है । मूल पाठ में अनेक पद ऐसे आए हैं, जिनकी व्याख्या करना आवश्यक है । वह इस प्रकार है विशिष्ट प्रकार की तपश्चर्या करने से तपस्वियों को विस्मयकारी लब्धियाँ - शक्तियाँ स्वतः प्राप्त हो जाती हैं । उनमें से कुछ लब्धियों के धारकों का यहाँ उल्लेख किया गया 1 श्रामषधिलब्धिधारक - विशिष्ट तपस्या के प्रभाव से किसी तपस्वी में ऐसी शक्ति उत्पन्न हो जाती है कि उसके शरीर का स्पर्श करते ही सब प्रकार के रोग नष्ट हो जाते हैं । वह तपस्वी श्रमर्षो लिब्धि का धारक कहलाता है । श्लेष्मौषधिलब्धिधारी -- जिनका श्लेष्म - कफ सुगंधित और रोगनाशक हो । • जल्लोषधिलब्धिधारी - जिनके शरीर का मैल रोग-विनाशक हो । विडौषधिलब्धिधारी - जिनका मल-मूत्र रोग - विनाशक हो । सर्वोषधिलब्धिधारी - जिनका मल, मूत्र, कफ, मैल आदि सभी कुछ व्याधिविनाशक हो । बीजबुद्धिधारी - बीज के समान बुद्धि वाले । जैसे छोटे बीज से विशाल वृक्ष उत्पन्न हो जाता है, उसी प्रकार एक साधारण अर्थ के ज्ञान के सहारे अनेक अर्थों को विशद रूप से जान लेने वाली क्षयोपशमजनित बुद्धि के धारक । कोष्ठनुद्धिधारी – जैसे कोठे में भरा धान्य क्षीण नहीं होता, वैसे ही प्राप्त ज्ञान चिरकाल तक उतना ही बना रहे- -कम न हो, ऐसी शक्ति से सम्पन्न | पदानुसारो बुद्धिधारक - एक पद को सुन कर ही अनेक पदों को जान लेने की बुद्धिशक्ति वाले । संभिन्नश्रोतलब्धिधारी - एक इन्द्रिय से सभी इन्द्रियों के विषय को ग्रहण करने की शक्ति वाले । श्रुतधर - आचारांग आदि आगमों के विशिष्ट ज्ञाता । मनोबली - जिनका मनोबल अत्यन्त दृढ हो । वचनबली - जिनके वचनों में कुतर्क, कुहेतु का निरसन करने का विशिष्ट सामर्थ्य हो । कायबली - भयानक परीषह और उपसर्ग आने पर भी अचल रहने की शारीरिक शक्ति के धारक | ज्ञानबली - मतिज्ञान आदि ज्ञानों के बल वाले ।
SR No.003450
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
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