SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२२] [प्रश्नव्याकरणसूत्र :शु. १, अ. ४ इन नौ महानिधियों में चक्रवर्ती के लिए उपयोगी सभी वस्तुओं का समावेश हो जाता है । इन पर निधियों के नाम वाले देव निवास करते हैं। इनका क्रय-विक्रय नहीं हो सकता। सदा देवों का ही आधिपत्य होता है।' चौदह रत्न-उल्लिखित नौ निधियों में से 'सर्वरत्ननिधि' से चक्रवर्ती को चौदह रत्नों की प्राप्ति होती है । यहाँ 'रत्न' शब्द का अर्थ हीरा, पन्ना आदि पाषाण नहीं समझना चाहिए। वस्तुतः जिस जाति में जो वस्तु श्रेष्ठ होती है, उसे 'रत्न' शब्द से अभिहित किया जाता है। जो नरों में उत्तम हो वह 'नररत्न' कहा जाता है। रमणियों में श्रेष्ठ को 'रमणीरत्न' कहते हैं। इसी प्रकार समस्त सेनापतियों में जो उत्तम हो वह सेनापतिरत्न, समस्त अश्वों में श्रेष्ठ को अश्वरत्न आदि । इसी प्रकार चौदह रत्नों के सम्बन्ध में भी समझना चाहिए। चौदह रत्नों के नाम निम्नलिखित हैं (१) सेनापति (२) गाथापति (३) पुरोहित (४) अश्व (५) बढई (६) हाथी (७) स्त्री (८) चक्र (९) छत्र (१०) चर्म (११) मणि (१२) काकिणी (१३) खड्ग और (१४) दण्ड । इनका परिचय अन्यत्र देख लेना चाहिए। विस्तारभय से यहाँ उल्लेख नहीं किया गया है। __ ऐसी भोग-सामग्री के अधिपति भी कामभोगों से अतृप्त रहकर ही मरण-शरण होते हैं । बलदेव और वासुदेव के भोग ___८६-भुज्जो भुज्जो बलदेव-वासुदेवा य पवरपुरिसा महाबलपरक्कमा महाधणुवियट्टगा महासत्तसागरा दुद्धरा धणुद्धरा भरवसहा रामकेसवा भायरो सपरिसा वसुदेवसमुद्दविजयमाइयदसाराणं पज्जुण्ण-पईव-संब-अणिरुद्ध-णिसह-उम्मय-सारण-गय-सुमुह-दुम्मुहाईण जायवाणं अट्ठाण वि कुमारकोडोणं हिययदइया देवीए रोहिणीए देवीए देवकीए य पाणंद-हिययभावणंदणकरा सोलसरायवर-सहस्साणुजायमग्गा सोलसदेवीसहस्सवरणयणहिययदइया जाणामणिकणगरयणमोत्तियपवालधणधण्णसंचयरिद्धिसमिद्धकोसा हयगयरहसहस्ससामी गामा-गर-णगर-खेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह-पट्टणासमसंबाह-सहस्सथिमिय- णिव्वुयपमुइयजण-विविहसास-णिप्फज्जमाणमेइणिसरसरिय- तलाग-सेलकाणणपारामुज्जाणमणाभिरामपरिमंडियस्स दाहिणड्ढवेयड्ढगिरिविभत्तस्स लवण-जलहि-परिगयस्स छविहकालगुणकामजुत्तस्स अद्धभरहस्स समिगा धीरकित्तिपुरिसा प्रोहबला अइबला अणिहया अपराजियसत्तु-मद्दणरिपुसहस्समाणमहणा । साणुक्कोसा अमच्छरी अचवला प्रचंडा मियमंजुलपलावा हसियगंभीरमहुरभणिया अब्भुवगयवच्छला सरण्णा लक्खणवंजणगुणोववेया माणुम्माणपमाणपडिपुण्णपसुजायसव्वंगसुदरंगा ससिसोमागारकंतपियदसणा अमरिसणा पयंडडंडप्पयारगंभीरदरिसणिज्जा तालद्धान्विद्धगरुलकेऊ बलवगगज्जंतदरियदप्पियमुट्ठियचाणूरमूरगा रिट्ठवसहघाइणो केसरिमुहविप्फाडगा दरियणागदप्पमहणा जमलज्जुणभंजगा महासउणिपूयणारिवू कंसमउडमोडगा जरासंधमाणमहणा। १. स्थानाङ्ग, स्थान ९, पृ. ६६६-६६८ (अागम प्रकाशन समिति, ब्यावर) २. प्रश्नव्याकरण, विवेचन ३५६ पृ. (आगरा संस्करण, श्री हेमचन्द्रजी म.)
SR No.003450
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages359
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_prashnavyakaran
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy